अपने देश में बहुत से धर्म, मजहब और पंथ हैं, फिर भी यहां अन्य देशों की अपेक्षा कहीं अधिक शांति और सौहार्द देखने को मिलती है। इसका कारण ढूंढ़ने पर सिर्फ यही महसूस है कि अपने देश में सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे में विश्वास रखते हैं, एक-दूसरे का आदर करते हैं। भारत में ऐसी बहुत सी दरगाहें हैं जहां हिन्दू व अन्य धर्मों के लोग आपको देखने को मिल जाएंगे। इसी प्रकार से हिन्दू लोगों की उपासना पद्धति को मुस्लिम लोग भी अपने जीवन में अपनाते नज़र आ जाएंगे। यह सब सिर्फ दिखावा नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे ही मुस्लिम परिवार से मिलाने जा रहे हैं जो मानवीय प्रेम और भाईचारे की जीती जागती मिसाल के रूप में समाज में एक प्रकाश स्तंभ बन कर खड़ा है।
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यूपी मुगल शासक अकबर के जमाने से हिन्दू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी तहजीब की कई मिसाल अपने आप में समेटे हुए है। एक तरफ अकबर की तीसरी पत्नी जोधाबाई हर साल कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाती थीं, तो वहीं अकबर के नौ रत्नों में शामिल तानसेन भी इस उत्सव में शरीक होते थे। आज भी कुछ लोग धर्म और कट्टरवाद से ज्यादा खुशी को अहमियत देते हैं और हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बनते हैं। ऐसा ही एक नाम है डॉ. एस अहमद का, जो अपने परिवार के साथ पिछले कई सालों से जन्माष्टमी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाते आ रहे हैं। कानपुर के बर्रा विश्वबैंक कॉलोनी निवासी डॉ. एस अहमद मियां के घर में गूंजती घंटियों और उसके साथ “ॐ जय जगदीश हरे…” आरती की आवाजें बड़े से बड़े मौलवियों और मठाधीशों को कुछ सोचने पर मजबूर कर देंगी जो पानी में शक्कर की तरह घुल चुकी इस संस्कृति को तोड़ने का सपना संजो लेते हैं।
बाराबंकी की एक मजार पर जहां हिन्दू और मुस्लिम एक साथ इबादत करते हैं वहीं से प्रेरणा लेकर डॉ. एस अहमद बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ 29 वर्षों से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाते आ रहे हैं। यहां पर यह भी बता दें कि डॉ. अहमद मूलरूप से बाराबंकी के ही रहने वाले हैं। जहां पर देवाशरीफ हजरत वारिशताख की दरगाह है। इस तरह से जहां डॉ. एस. अहमद सभी कौमों में एकता और समरसता के प्रतीक हैं, वहीं वह भाईचारे और सौहार्द का संदेश भी जनमानस में फैला रहे हैं।