अरब के मक्का शहर में बने काबा को आपने हमेशा ढके हुए ही देखा होगा पर क्या आप जानते हैं कि काबा पर किसने सबसे पहले कवर यानि गिलाफ को चढ़ाया था और यह क्यों चढ़ाया गया था। असल में यह एक ऐसी बात है कि इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग अनजान हैं इसलिए आज हम आपको यह बात बता रहें हैं। सबसे पहले आप यह जान लें कि काबा को जिस कपडे़ से कवर किया जाता है उसको “किस्वा” कहा जाता है और इसको बदलने का एक पुराना इतिहास रहा है। असल में काबा को जाहिलियत के दौर से ढका गया था और इस्लाम के प्रकटन के बाद भी यह किस्वा बदलने की परंपरा यू ही जारी रही। असल में बात यह है कि मुस्लिम लोग अल्लाह की इबादत करते हुए काबा को किस्वा से सजाते हैं और परस्पर एक-दूसरे के बीच प्रीति और प्रेम बढ़ने के लिए इसको “किबला” बनाये जाने के लिए खुदा का धन्यवाद भी किया जाता है।
 Image Source:
Image Source:
कहा जाता है की जाहिलियत के दौर में क़िबले का किस्वा वर्तमान के किस्वे जैसा नहीं होता था बल्कि कई रंगों का होता था और वह कई रंगीन कपड़ो तथा चमड़ें से मिलकर बना होता था। अलवाकदी ने इब्राहीम बिन अबू राबिया के बारे में फरमाया है कि “जाहिलियत के दौर में बैतुल्लाह को चमड़ों की गिलाफ से ढका गया।”, जहां तक इस्लाम की बात है तो काबा को सबसे पहले काबा पर “मुहम्मद साहब” ने येमेनी कपड़े का गिलाफ चढ़ाया था और इसी तरह से अबू बकर, उमर, उस्मान आदि ने सफेद तथा लाल धारी वाले येमेनी कपड़े का उपयोग इसको ढकने में किया था।
 Image Source:
Image Source:
इसके बाद में हज्जाज बिन यूसुफ़ अब्दुल मालिक बिन मरवान के समय में काबा खाने पर कमख्वाब का गिलाफ चढ़ाया गया था। इसके बाद में यदि हारून रशीद के समय की बात करें तो उस समय काबा खाने पर साल में तीन बार अलग-अलग रंगों का गिलाफ चढ़ाया जाता था। वर्तमान में आप सबसे काबा पर काले रंग का कमख्वाब देखा होगा तो आपको यह भी बता दें कि यह काले रंग का कमख्वाब सबसे पहले “खलीफा नासिर अब्बास” (मृतक 622 ही.) ने चढ़ाया था। उस समय से ही काले रंग का कमख्वाब काबा खाना पर चढ़ता आ रहा है।
 Image Source:
Image Source:
जहां तक बात काबा पर पूरी तरह से गिलाफ चढाने की बात है कि यहां हम आपको यह भी बता दें की हमारी राष्ट्र का “शहंशाह तुब्बा” वह पहला व्यक्ति था जिसने काबा को पूरी तरह से गिलाफ में ढक दिया था और इस गिलाफ में उसने विभिन्न प्रकार के कपडे़ का उपयोग किया था। इसके अलावा आज जो दरवाजा काबा का है वह और उसकी कुंजी भी शहंशाह तुब्बा ने ही बनवाई थी। तुब्बा के बाद में उसके उत्तराधिकारियों ने भी काबा को किस्वा के ढकने की यह परंपरा जारी रखी जो की आज तक चलती आ रही है।
