महाभारत काल से जुड़ी घटना सदियों पुरानी है, जिसके बारे में आज भी कुछ बातों से लोग अनजान है। इस महाभारत का एक ऐसा पात्र है जिसनें महाभारत को एक ही दिन में खत्म करने का चैलेंज देकर श्रीकृष्ण को भी एक बार सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। इस महायोद्धा के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया कि ऐसा महारथी कौन था? लेकिन इस पराक्रमी योद्धा के बारें में आज हम आपको बताने जा रहें है। चलिए जानते हैं इसके बारे में।
महाभारत के सबसे पराक्रमी वीर योद्धा भीम के बारे में तो हम सभी जानते है पर क्या आपने बर्बरीक नाम के इस योद्धा के बारे में सुना है? यह महा योद्धा भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र था। जो इस महाभारत का सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी योद्धा था। इसने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को खुश करके तीन अजेय बाण प्राप्त किए थे। इसके साथ ही इसकी तपस्या से खुश होकर अग्नि देव ने इसे एक दिव्य धनुष प्रदान किया था। बर्बरीक ने युद्ध कला की शिक्षा अपनी मां से सिखी थी। जिसमें उसने कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध लड़ने के प्रतिज्ञा अपनी मां से ली थी।
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बर्बरीक के इस शक्तिशाली पराक्रम को देखने के साथ ही युद्ध में कमजोर पक्ष के साथ देने की प्रतिज्ञा के कारण श्रीकृष्ण ने उसे महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिए मना कर दिया था। क्योंकि श्रीकृष्ण को इस बात का आभास था कि सबसे पहले बर्बरीक युद्ध में भाग लेकर निश्चित ही अपने पिता भीम का साथ देगा। क्योंकि उनकी सेना कौरवों के सामने कमजोर थी। लेकिन जैसे ही वह युद्ध भूमि में कौरवों का पक्ष कमजोर होने लगता तो वह मां के वचन के कारण कौरवों के साथ होकर पांडवों की सेना का अंत करता, जिससे दोनों ही वंश का नाश हो जाता है। इसी को देखते हुए पांडवों को युद्ध में जीत हासिल करवाने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका धड़ दान में मांग लिया था। श्रीकृष्ण की इस बात को मान कर बर्बरीक ने अपने सिर को दान देने के बदले में पूरा युद्ध का आंखों देखा हाल जानने के लिए दिव्य दृष्टि मांगी थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने उसके सिर को एक ऊंचे पहाड़ पर बिना धड़ के रख कर दिव्य दृष्टि भी प्रदान की थी। ताकी वह इस युद्ध को पूरा हाल अपनी आंखों से देख सकें।
बर्बरीक के बाणों की खासियत यह थी-
बर्बरीक की युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ देने की प्रतिज्ञा के बारे में श्रीकृष्ण जानते थे। इसलिए उन्होनें बर्बरीक की योग्यता की परीक्षा ली। उन्होंने बर्बरीक से उसके तीनों बाणों के महत्व के बारे में बताने को कहा। तब बर्बरीक ने अपने पहले बाण की योग्यता के बारे में बताते हुए कहा कि यह बाण केवल मेरे इशारों पर ही चीजों को नष्ट कर सकता है। जिसे मैं खत्म करना चाहता हूं। दूसरा बाण, उन सभी चीजों को बचाता है, जिन्हें मैं बचाना चाहता हूं। अंतिम बाण उन सभी वस्तुओं का विनाश कर सकता है। जिसे मैं चाहता हूं। इसके बाद तीनों बाण पुनः मेरे पास वापस आ जाएंगे।
कहां जाता है कि युद्ध के शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने सभी योद्धाओं से इस युद्ध के अंत के बारें में पूछा था कि कौन योद्धा इस युद्ध को अकेले कितने दिनों में खत्म कर सकता है। जिस पर सभी लोगों ने अपनी अपनी-अपनी योग्यताओं का परिचय देते हुए उत्तर दिया था। जिसमें द्रोणार्चाय ने 25 दिन में, तो अर्जुन ने 28 दिनों में भीष्म ने 20 दिन और कर्ण ने 24 दिनों में इस युद्ध को अकेले खत्म करने की बात कही थी। पर जब यही बात बर्बरीक से पूछी गई, तो उन्होनें इस युद्ध को एक ही क्षण में खत्म करने की बात कही थी। बर्बरीक की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण को उनकी योग्यता का आभास हो गया था।
श्रीकृष्ण ने ली थी बर्बरीक की परीक्षा-
बर्बरीक की योगयता को जानने के लिए भगवान कृष्ण ने उन्हें बाणों का प्रयोग करके दिखाने को कहा- जिसमें उन्हें एक ही बाण से एक पेड़ के पूरे पत्ते को भेदने के लिए कहां। उनकी योग्यता का पता लगाने के लिए श्रीकृष्ण ने उस पेड़ के एक पत्ते को अपने पैर के नीचे दबा लिया। बर्बरीक ने भी अपनी योग्याता का सही परिचय देते हुए उस पेड़ के पूरे पत्तों के साथ श्रीकृष्ण के द्वारा पैरों के नीचे दबाए पत्ते को भी बाण से भेद दिया। बर्बरीक के इस पराक्रम को देख श्रीकृष्ण ने उसे कलियुग में खाटुश्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान भी दिया था। जिन्हें आज भी हम राजस्थान के खाटू श्याम जी के तौर पर पूजते आ रहें हैं।