कभी-कभी जीवन में इस प्रकार की घटनाएं देखने को मिलती हैं जिनको देख कर बहुत दुःख होता है। बहुत से लोग आज भी अपने देश में ऐसे हैं जो कि बहुत प्रतिभा संपन्न हुए हैं, पर वक्त और जीवन की कुछ मजबूरियों ने उनको आगे बढ़ने ही नहीं दिया। ऐसे लोगों को देख कर कभी-कभी लगता है कि जिंदगी ने इनके साथ सुलूक ही अच्छा नहीं किया। आज इस प्रकार के कई लोग अपने देश में मौजूद हैं जिन्होंने एक समय अपनी प्रतिभा के बल पर दुनिया को सोचने को मजबूर कर दिया था, परन्तु वर्तमान समय में इनकी हालत देख कर दुःख होता है। इन्हीं में से एक वैज्ञानिक के जीवन को आज हम आपके सामने रख रहे हैं जो कि आज अपना जीवन सड़क पर गुजारने पर मजबूर हैं। आइये जानते हैं इस वैज्ञानिक के बारे में।
इनका नाम है के. सी. पॉल और यह कोलकाता में रहते हैं। देखा जाए तो यह भूकेन्द्रित खगोल विज्ञान के प्रस्तावक हैं, पर शोध करने के लिए न तो कोई सहायता इनको सरकार की ओर से दी गई और न ही किसी स्वयं सेवा संगठनों की ओर से। फिर भी के. सी. पॉल ने अपने निजी अनुभव और ज्ञान के आधार पर यह सिद्ध किया कि “सभी प्रकार के ग्रहों का केंद्र पृथ्वी ही है।” जैसा कि आप उनके इस चित्र में देख सकते हैं –
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पॉल ने अपने जीवन के 40 वर्ष पृथ्वी और उसके ग्रहों के घूर्णन सिद्धांत पर शोध करने में लगा दिए। उनका मानना है कि प्रत्येक गृह पृथ्वी के चारों ओर ही चक्कर लगाते हैं। यहां तक कि सूर्य भी। हालांकि इस बात को सनकीपन ही कहा जा सकता है, पर यह उन्होंने अपने शोध में सिद्ध किया हुआ है।
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18 अगस्त 2003 के दिन पॉल अपने घर से अपना मालिकाना हक़ भी खो चुके हैं और अपना जीवन कोलकाता के फ़ुटपाथ पर गुजारने को मजबूर हैं। उनको किसी प्रकार की पेंशन भी नहीं मिल रही है और वे अपना जीवन 17 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 500 रुपए में गुजार रहे हैं। पॉल का जन्म कोलकाता के हावड़ा में सन् 1942 में हुआ था। आर्थिक कारण की वजह से पॉल ने एक स्थानीय स्कूल में ही पढ़ाई की और वे आगे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके। 1965 की भारत और चीन की लड़ाई में उन्होंने भारतीय सेना को ज्वाइन कर लिया। शुरू में वे फतेहगढ़ उत्तर प्रदेश में तैनात रहे। वहीं उनके मन में विचार आया कि क्या सूर्य ही पृथ्वी के चक्कर लगाता है। इस बीच समाचार पत्र अमर उजाला ने उनका इंटरव्यू छाप दिया। इस वजह से सेना ने उनको अपनी सेवा के दौरान बिना अनुमति के इंटरव्यू देने के कारण निकाल दिया। आज वह सड़क पर रह रहे हैं जो कि बहुत दुःख की बात है। सरकार और स्वयं सेवी संस्थाओं को इस ओर ध्यान देना चाहिए।