बीते दिनों हमने आपको अपने पहले आलेख में हजरत इब्राहिम के जीवन के दो वाकये बताने का वायदा किया था। उसे पूरा करते हुए हम आपको हजरत इब्राहिम के जीवन के दूसरे वाकये के बारे में बता रहे हैं। पहले वाकये को पढ़ कर आप जान ही गए होंगे कि हजरत इब्राहिम का विश्वास कितने ऊंचे दर्जे का था और वे हमें भी अपने विश्वास को बढ़ाने की शिक्षा दे रहे हैं। उनके इस दूसरे वाकये में आप जानेंगे कि विश्वास के साथ-साथ आपकी मोहब्बत और आपका प्यार किस कदर खुदा से होना चाहिए कि वह आप पर अपनी मेहर को रुज़ू करे। इसलिए हमने इस आलेख का नाम रखा है “इब्राहिम का सबसे बड़ा बलिदान”, तो आइये शुरू करते हैं इस पाक वाकये के बारे में आपको बताना।
“इब्राहिम का सबसे बड़ा बलिदान” –
यह किस्सा उस समय का है जब हजरत इब्राहिम कई इम्तिहानों से गुजर चुके थे और उस समय लोग अब उनको एक पैगंबर और एक नबी की हैसियत से देखने लगे थे, लेकिन देखा जाए तो हजरत इब्राहिम की शान को खुद खुदा ने ही बढ़ाया था उनका इम्तिहान लेकर। हजरत इब्राहिम ही ऐसे इंसान रहे जिनका इम्तिहान खुद खुदा ने लिया था और उनके जीवन का यह किस्सा न सिर्फ उनकी शान को बढ़ाता है बल्कि यह हमें बताता भी है कि सिर्फ विश्वास ही काफी नहीं है, अपनी मोहब्बत भी तुमको कुर्बान करनी पड़ेगी यदि तुम उसकी मोहब्बत को चाहते हो तो।
पहले वाकये में आपने जाना कि आपका विश्वास किस कदर ऊंचा होना चाहिए, यदि आप इबादत करते हो तो और यह दूसरा वाकया आपको बताता है कि विश्वास के साथ मोहब्बत को भी साथ लो और कुर्बान कर दो उस पर जिसका है यह सब कुछ।
قُلْ إِنَّنِي هَدَانِي رَبِّي إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ دِينًا قِيَمًا مِّلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا ۚ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
कहो, ” बेशक मेरे खुदा ने मुझे सीधी राह दिखाई है, जो कि सच्चा मज़हब है- जिस पर अब्राहिम सच्चे विश्वास के साथ चले थे और उन्होंने अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं किया।”
(सूरा अल-161)
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हजरत इब्राहिम के जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब वह एक रोज रात को सो रहे थे और उन्होंने सपना देखा कि अल्लाह ने उनको अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने के लिए कहा है। सपना टूटने के बाद हजरत इब्राहिम ने इस बारे में बहुत सोचा और आखिर में अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला ले लिया। जिन लोगों को यह बात पता चली, हर किसी ने यह जानना चाहा कि हजरत इब्राहिम की वो सबसे प्यारी चीज आखिर क्या है जिसको वह अल्लाह की राह में कुर्बान करने जा रहे हैं। कुछ समय बाद जब सबके सामने यह बात रखी गई कि उनकी सबसे प्यारी चीज उनका बच्चा इस्माइल है और वो उसी की कुर्बानी अल्लाह की राह में देंगे तो सब लोग चौंक उठे, पर क्या हो सकता था। अल्लाह की राह का राहगीर उसकी राह में अपने कदम आगे बढ़ा चुका था। हजरत इब्राहिम ने फैसला कर लिया था कि वे अल्लाह की राह में अपने बेटे को ही कुर्बान करेंगे।
यहां पर हजरत इब्राहिम की उस मोहब्बत को देखना चाहिए जो उनको अल्लाह से थी। उस मोहब्बत के मुकाम के बारे में सोचना चाहिए जिसके लिए उन्होंने अपने बेटे को ही कुर्बान करने का फैसला बिना किसी हिचकिचाहट के ले लिया था। आप जब अपनी दुनियावी मोहब्बत को हजरत इब्राहिम की इश्क हकीकी से तोलेंगे तो आप खुद ही समझ जायेंगे कि आपकी इबादत में कमी आखिर क्या है।
समय आने पर हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को उसे कुर्बान करने की बात बताई और अपने बेटे से इस बारे में पूछा तो इस्माइल ने भी अपना सिर ख़ुदा की बंदगी में झुकाते हुए अपनी कुर्बानी की सहमति दे दी। कुर्बानी के दिन हजरत इब्राहिम और इस्माइल के चेहरे पर किसी प्रकार के रोष या दुःख के भाव न थे, पर हजरत इब्राहिम की पत्नियों सहित उनके अनुयायियों में इस्माइल की कुर्बानी को लेकर बहुत दुःख था, लेकिन हजरत इब्राहिम अपना कदम उठा चुके थे और उनको वापस लाना अब मुमकिन ही नहीं था।
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हजरत इब्राहिम अपने बेटे को आबादी से दूर मीना के मैदान में ले गए थे। उन्होंने इस्माइल को वहां एक पत्थर पर बैठाया और अल्लाह का सजदा किया। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे और अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि कुर्बानी के आखिरी समय में बाप-बेटा एक दूसरे को देख कहीं मानवीय प्रेम यानि इंसानी मोहब्बत के दरिया में न बह जाएं। अंत में हजरत इब्राहिम ने अपनी छूरी अपने बच्चे इस्माइल की गर्दन पर चला दी, लेकिन अल्लाह को हजरत इब्राहिम की बंदगी की यह अदा इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस्माइल को उस स्थान से हटा कर एक दुम्बे (भेड़) को उस स्थान पर ला खड़ा कर दिया। इस प्रकार से इस्माइल बच गया और दुम्बे की क़ुर्बानी हो गई। मीना का वह रेगिस्तानी मैदान आज भी है और हर साल हाजी लोग हज के अवसर पर वहां कुर्बानी की रस्म अदा करते हैं। साथ ही उस समय कुर्बानी के दौरान अपनाए हजरत इब्राहिम के अमल को अदा करते हैं।
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यह घटना जहां एक ओर यह दर्शाती है कि अल्लाह से इश्क इंसानी मोहब्बत से कहीं बढ़ कर करना चाहिए, वहीं यह घटना दीनी इल्म भी देती है कि अल्लाह की राह में अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले ही उसके यहां सबसे ऊंचा दर्जा पाते हैं।