पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन ने एक ऐसा समय भी आया था जिसके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते हैं। उस समय में इंदिरा काफी खाली थीं। उनके पास कोई जिम्मेदारी वाला पद नहीं था। यह वह समय था जब इंदिरा देश की जनता के साथ-साथ अपने घर के सदस्यों के भी काफी करीब आ गई थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं देश में इमरजेंसी के बाद के समय की।
इस दौरान इंदिरा गांधी पूरी तरह आध्यात्मिक हो गईं थीं। वह रोज सुबह योगा करती थीं और मां आनंदमयी के उपदेश की रिकार्डिंग सुनती थीं। दिन में लोगों से मिलने के बाद वह खाली समय में घर के सदस्यों के लिए स्वेटर बुनती थीं। रात में सोने से पहले कई आध्यात्मिक किताबें पढ़ती थीं, जिनमें ओशो साहित्य और मां आनंदमयी के अतिरिक्त स्वामी रामतीर्थ द्वारा लिखी गई किताबें होती थीं। इस प्रकार से इंदिरा गांधी अपने खाली समय में घर के सदस्यों के लिए जहां स्वेटर बुनती थीं, वहीं अपने स्वास्थ्य के लिए योग भी करती थी और मानसिक शांति के लिए प्रबुद्ध लोगों के रिकॉर्डिंग टेप के साथ साथ उनकी पुस्तिकों का अध्ययन करती थीं।
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इंदिरा की लाइफ उस समय में काफी बदल गई थी। उनसे मिलने वालों में नेताओं के अलावा साधु संत भी काफी संख्या में होते थे। सूत्रों की मानें तो इन मुलाकातों के बाद खाली समय में इंदिरा हाथों में ऊन के गोले और सलाइयां रखती थीं। अपने स्वजनों के लिए स्वेटर आदि बुनना उन दिनों उनकी आदत में शामिल था। एक बजे के लगभग भोजन करने के बाद वे घंटेभर विश्राम करती थीं। विश्राम के बाद अक्सर वे पाकिस्तानी गायक मेहंदी हसन की गजलों के टेप सुनती थीं। रात में बिस्तर पर जाने के पहले आध्यात्मिक साहित्य और गीता पढ़ती थीं। इस साहित्य में मां आनंदमयी के अतिरिक्त स्वामी रामतीर्थ और ओशो की पुस्तकें प्रमुख थीं।
वैष्णोदेवी यात्रा के बाद आया बड़ा बदलाव–
श्रीमद् भगवत गीता में भी इस दरम्यान इंदिरा गांधी की पर्याप्त रुचि हो गई थी। उन्हीं दिनों कुछ समय के लिए वे हरिद्वार भी गई थीं, जहां स्वामी अखंडानंद के भगवत पाठ का उन्होंने श्रवण किया था। ऋषिकेश के निकट स्वामी शिवानंद के आश्रम में भी उन्होंने कुछ घंटे व्यतीत किए थे। अपने जीवन के अंतिम चरण में इंदिरा पूरी तरह शाकाहारी हो गई थीं। उनमें यह परिवर्तन उनकी वैष्णोदेवी यात्रा के बाद आया था। वैष्णोदेवी के सम्मुख करबद्ध होकर वे लगभग आधे घंटे तक पूरी तरह ध्यान मग्न होकर बैठी रही थीं। अपनी उस यात्रा के दौरान कश्मीर के जिस स्थान पर भी वे गईं, वहां के लगभग सभी देव मंदिरों के दर्शन उन्होंने किए।
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खाली समय में करती थीं भजन-
प्रधानमंत्री के रूप में भी इंदिरा गांधी जब कभी दक्षिण भारत जाती थीं तो वहां के सुप्रसिद्ध देवालयों में वे अनिवार्य रूप से पूजन करती थीं। जीवन के अंतिम सोपान में गांधी की श्रद्धा बहुत बढ़ गई थी और वे नियमित रूप से भजन-पूजन करती थीं।