सहवाग के दिल का दर्द

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दुनिया के सबसे विस्फोटक बल्लेबाजों में शुमार वीरेन्द्र सहवाग, जिनकी धुंआधार बल्लेबाजी से दुनिया का हर गेंदबाज खौफ खाता था और इसी तेज गेंदबाजी के चलते भारत को सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाने में सहवाग का भरपूर योगदान रहा है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। सहवाग ने अपने मैच में 23 टेस्ट शतक और 15 वनडे शतक लगाए हैं। जिसके चलते भारतीय क्रिकेट जगत में सहवाग ऐसे पहले एकमात्र खिलाड़ी बन गए जिन्हें अप्रैल 2009 में विजडन लीडिंग क्रिकेटर ऑफ द ईयर के खिताब से नवाजा गया था। इसके बाद भी उन्होंने दूसरी बार इस खिताब को फिर जीता।

शानदार अंतरराष्ट्रीय करियर के बाद हाल ही में सन्यास की घोषणा करने वाले विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने पूरे देश को तब हिला कर रख दिया जब उन्होंने सन्यास लेने की घोषणा अचानक ही कर दी। लोग समझ ही नहीं पा रहे थे उनकी इस अचानक हुई घोषणा का कारण क्या है, पर उनके मन में उठे सवालों ने उन्हें काफी झकझोर कर रख दिया था जिसका दर्द सहवाग को हमेशा ही बना रहेगा। उन्होंने कहा है कि उनके दिमाग में विदाई मैच से वंचित रहने का दुख हमेशा रहेगा।

सहवाग ने अपने मन की बात बताते हुए कहा था कि चयनकर्ताओं ने मुझसे कहा कि वे लोग मुझे टीम से बाहर करने जा रहे हैं। मैंने आग्रह किया कि मुझे दिल्ली में अंतिम टेस्ट खेलकर सन्यास की घोषणा करने दी जाए, लेकिन उन्होंने मुझे अवसर नहीं दिया। उन्होंने कहा मुझे खेलते हुए सन्यास लेने का मौका नहीं दिया गया, इसका दुख मेरे दिमाग में हमेशा रहेगा।

यह बात सत्य है कि एक खिलाड़ी अपने खेल में तब तक जी जान एक करता रहता है जब तक वो अपनी टीम को उच्च शिखर तक ना पहुंचा दे। इस दौरान वो इस बात को महसूस नहीं करता है कि उसे कब सन्यास लेना चाहिए, लेकिन जैसे ही उसे टीम से बाहर किया जाता है वह इस बारे में सोचने लगता है। इसके बाद अपने दिल की बात सबके सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि मैं पूछना चाहूंगा देश के सभी लोगों से कि अपने देश के लिए 12 से 13 वर्ष खेलने वाले खिलाड़ी को क्या एक विदाई मैच नहीं मिलना चाहिए?

अगर ऐसा होता है तो यह हम जैसे खिलाड़ियों के लिए बहुत ही अच्छा होगा। अगर बीसीसीआई आयोजित नहीं करता है तो डीडीसीए को आयोजित करना चाहिए। यह सिर्फ मेरा प्रश्न नहीं है, हर वो खिलाड़ी जो सन्यास लेता है उसे विदाई मिलनी चाहिए।

अपनी बात रखते हुए पूर्व सलामी बल्लेबाज ने यह भी कहा कि खिलाड़ियों के चयन के लिए एक तय मापदंड होना चाहिए चाहे वो सीनियर हो या जूनियर। उन्होंने कहा, अगर एक खिलाड़ी लगातार चार या इससे अधिक मैचों में अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रहता है तो उसे इस बात का ख्याल किए बिना बाहर किया जाना चाहिए कि वह सीनियर है या जूनियर।

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