शादी का नाम सुनते ही सभी के मन में खुशियों की लहर सी दौड़ जाती है। शादी के लिए आज कई लोग इंटरनेट पर भी निर्भर रहते है। हमारे ही भारत में शादी से जुड़ी कई ऐसी रस्में होती है। जिन्हें जानकर सभी हैरान हो जाते है। आज हम आपको उत्तराखण्ड के देहरादून से जुड़े एक समुदाय की शादी की ऐसी रस्म को बताने जा रहें हैं। जिसको जानकर आप भी हैरान हो जाओगे। इस समुदाय में साटा पल्टा ही पंरपरा कई वर्षों से निभाई जा रही हैं।
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जो इस पंरपरा को निभाने के सक्षम नहीं होता उस दूल्हें को लड़की वालों के घर पर शादी से पहले पांच से दस सालों तक नौकरी करनी पड़ती हैं।
जानें इस रस्म के बारें में
देहरादून के जौनसार बावर क्षेत्र में गुर्जर समुदाय के लोग रहते है। इस समुदाय के लोगों में सदियों से साटा पल्टा नाम की रस्म निभाई जाती हैं। इस रस्म के अनुसार दुल्हन को ले जानें के लिए एक दुल्हन लड़की वाले के परिवार को भी देनी पड़ती है। मतलब दोनों ही परिवार वालों को लड़कियों का आदान प्रदान करना होता है। यदि दूल्हें के पक्ष वाले परिवार लड़की को देने में असमर्थ हुए तो दूल्हें को लड़की के घर पर शादी से पहले करीब पांच से दस सालों तक नौकरी करनी होती है। इस दौरान लड़के को लड़की के घर के मवेशी को चराना और जंगल से मवेशियों के लिए खाना लाना होता है।
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इतना ही नहीं इस समुदाय के लोगों की शादी में महिला संगीत की जगह पर पुरूष संगीत होता हैं। इसके अलावा बरातियों को अपने साथ दूध, मक्खन और घी लाना होता हैं। इसको जौहर कहा जाता है। इन सभी रस्मों को जो भी सुनता है वो हैरान हो जाता है कि जहां भारत के अधिकांश इलाकों में होने वाले दमाद को इज्जत दी जाती है। वहीं इस समुदाय में लड़के को शर्त न पूरी कर पाने में लड़की वालों के घर पर नौकरी करनी पड़ती है।