अपने देश में पुरातन काल से ही ऐसी बहुत सी चीजें जुड़ी रही हैं जो आज भी विज्ञान के लिए पहेली बनी हुई हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही पत्थर के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो रामायण काल का माना जा रहा है। लोगों का कहना है कि यह पत्थर उसी रामसेतु का है जिसको श्री राम ने श्रीलंका तक पहुंचने के लिए पत्थरों से बनाया था। कहा जाता है कि उस समय जिन पत्थरों का उपयोग किया गया था वे पानी पर तैरते थे, वैसे ही यह पत्थर आज भी पानी पर पिछले 20 सालों से तैर रहा है। आइए जानते हैं कि यह पत्थर कहां पर है और किसने इसे लाया है।
कहां है यह पत्थर –
Image Source :http://i9.dainikbhaskar.com/
यह पत्थर गुजरात के बड़ोदरा जिले के शिववाड़ी आश्रम के एक कुंड में स्थित है। इस पत्थर को करीब 20 साल पहले इस आश्रम के महंत भोलागिरी बापू द्वारा रामेश्वरम नामक जगह से लाया गया था। यह पत्थर 20 साल से यहां से एक जल कुंड में तैर रहा है और यह इस मंदिर में आने वाले लोगों की श्रद्धा का केंद्र बन चुका है। लोगों का विश्वास है कि ऐसे ही पत्थरों से श्रीराम ने समुंद्र पर पुल बनाया था। शिववाड़ी आश्रम, बड़ोदरा जिले के करजण नामक गांव में बना हुआ है। जब यह पत्थर करजण गांव के इस आश्रम में लाया गया तो पहले इसकी शोभायात्रा निकली गई थी और उसके बाद में आश्रम में ही एक जल कुंड बनवा कर उसके अंदर इस पत्थर को स्थापित किया गया था। तब से अब तक 20 साल का समय बीत चुका है और 20 साल से लगातार यह पत्थर उस जल कुंड में तैर रहा है। इस पत्थर का वजन 21 किलो है। काफी लोग इस पत्थर को देखने के लिए बहुत दूर-दूर से आते हैं और उनके लिए यह पत्थर किसी रहस्य के कम नहीं है।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक-
Image Source :http://i9.dainikbhaskar.com/
एमएस यूनिवर्सिटी बड़ोदरा के एन्वायरन्मेंटल साइंस के हेड अरुण आर्य कहते हैं कि तैरने वाली यह वस्तु कोई पत्थर नहीं बल्कि समुद्री जीव भी हो सकता है, जिसको कोरल कहा जाता है। यह जीव समुद्र में ही पाये जाते हैं। कोरल अंदर से खोखले होते हैं जिसकी वजह से ये पानी पर तैरते हैं। ये जीव जीवित और मृत अवस्था में काले पत्थर जैसे ही दिखाई देते हैं इसलिए कभी-कभी इनको पहचानने में धोखा हो जाता है।