अमरनाथ यात्रा 2019: जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित अमरनाथ की पवित्र गुफा के द्वार एक जुलाई से खुलने जा रहे है। लोग बड़ी संख्या में इकट्ठे होकर भोले बाबा के दर्शन करने पंहुचते है। 46 दिनों तक चलने वाले अमरनाथ यात्रा का समापन 15 अगस्त को रक्षा बंधन के त्योहार के साथ होता है।
हमारे देश में इस गुफा का विशेष महत्व है। यह दुनिया की एकमात्र ऐसी जगह है जहां पर प्राकृतिक रूप से बर्फ से बने शिवलिंग का निर्माण स्वत: ही हो जाता है। इसी जगह में दो और छोटी-छोटी बर्फ से बनी आकृति तैयार होती है। जिसे माता पार्वती और भगवान गणेश का रूप माना जाता है।
इन्हीं सब बातों के बीच एक और बेहद रोचक और दिलचस्प बात यहां देखने को मिलती है जिसका संबंध शिव पार्वती से जुड़ा हुआ बताया जाता है। यहां पर मौजूद दो कबूतरों भगवान शिव पार्वती के रूप है जो कबूतर के रूप में अमर अजर है। और हजारों साल से यहां विचरण करते देखे गए हैं। आज भी श्रद्धालु जब अमरनाथ गुफा में बाब बर्फानी के दर्शन के लिए आते हैं तो उनमें से कई लोगो को इन कबूतरों के भी दर्शन होते है। अमरनाथ यात्रा के दौरान इन कबूतरों का दिखना शुभ और लाभकारी माना जाता है।
क्या है कबूतरों के इस जोड़े का रहस्य
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार माता पार्वती जब एक बार भगवान शिव के पास गई तब उन्होनें इनके कंठ में धारण किये हुये नरमुंड माला के पहनने के बारें में पूछा। तब इस पर भगवान शिव ने जवाब दिया- ‘यह माला मैने तुम्हारे जन्म से पहले से धारण की हुई है।’ इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके अमर होने का रहस्य पूछा। माता पार्वती ने पूछा कि वो आखिरकार क्यों बार-बार मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं और कई बड़ी कठोर तपस्या को करने के बाद आपका साथ उन्हें प्राप्त होता है जबकि आप अमर रहते हैं आखिर कैसे?
पार्वती के इस प्रश्न को सुन भगवान शिव शांत हो गए। और बात को टालने की कोशिश करने लगे। लेकिन माता पार्वती के द्वारा बार बार हट करने के बाद आखिरकार उन्होनें महादेव को अपने प्रश्न के जवाब देने के लिए मना ही लिया। भगवान शिव ने कहा कि वे अमरत्व की कहानी उन्हें जरूर सुनाएंगे। इसके बाद शिव एक ऐसे स्थान की खोज में लग गए जहां पर उनके रहस्य को जानने या सुनने वाला कोई ना हो। आखिरकार भगवान शिव को एक गुफा मिल गई जो उन्हें कथा सुनाने के लिए सही लगी।
कहा जाता है कि भगवान शिव जब पार्वती के साथ उस गुफा की ओर जा रहे थे तब उन्होंने अपने शरीर में धारण किये हुये जीव जंतुओं को छोड़ दिया था। अपनी सवारी नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को भी निकालकर चंदनवाड़ी में अलग कर दिया। यही नहीं उन्होंने कंठ पर विराजमान सर्पों को भी शेषवाग झील के पास और अपने पुत्र भगवान गणेश को महागुणास पर्वत और पंजतरणी पर छोड़ दिया। इसके बाद भगवान शिव ने पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का भी त्याग कर दिया।
दो कबूतरों ने सुनी अमरत्व की कहानी
सभी चीजों को त्याग करके वो भगवान शिव, माता पार्वती को अमरत्व की कहानी सुनाने के लिए उस गुफा में पहुंच गए। वे पूरी तरह से सुनिश्चित थे कि उनके द्वारा तलाश की गई इस गुफा में कोई बाहरी तिनका भी मौजूद नही है। इसके बाद भगवान शिव ने कहानी आरंभ की। लेकिन कहानी सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। भगवान शिव को इस बारे में पता नहीं चला और वे कथा सुनाते रहे। इस दौरान वहां दो सफेद कबूतर भी थे जो गुफा के एक हिस्से में बैठ हुए थे। भगवान शिव को इसका आभास नहीं था। बहरहाल, शांत बैठें दोनों सफेद कबूतर भगवान शिव की कथा सुनते रहे और आखिकार अमरत्व की पूरी कहानी उन्होंने सुन ली।
कथा समाप्त होने के बाद जब भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो वे हैरान रह गये। तभी उनकी नजर वहां मौजूद उन दो कबूतरों पर भी पड़ी। भगवान शिव यह देख काफी क्रोधित हुए। और वे दोनों कबूतरों को मारने के लिए आगे बढ़े।
जिस पर कबूतरों ने भगवान शिव से विनती करते हुए कहा कि यदि वे उन्हें मार देते हैं तो अमरत्व की ये कहानी झूठी साबित हो जाएगी। यह सुन भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने इन दोनों कबूतरों को आशीर्वाद दिया कि वे हमेश इस जगह पर ऐसे ही वास करते रहेंगे। इस तरह यह गुफा भी अमरनाथ गुफा के नाम से लोकप्रिय हो गई।