देखा जाए तो आज तक अपनी दुनिया में ऐसे बहुत से लोग पैदा हुए हैं जिहोंने हिन्दू और मुस्लिम लोगों के बीच शांति और सद्भाव बनाने के लिए जीवन भर कार्य किया है। बहुत से ऐसे लोग भी हुए है जिन्होंने मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू धर्म पर अपना बहुत प्रभाव छोड़ा और इसके लिए बहुत सा साहित्य भी लिखा। ये लोग आज भी हिन्दू लोगों के लिए श्रद्धा का विषय हैं। हालांकि इस प्रकार के कई लोग पुरातन इतिहास में हुए हैं परन्तु आज भी रसखान के कृष्ण के लिए लिखे पद सबसे आदरणीय माने जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि रसखान एक मुस्लिम थे, इनका जन्म 1558 एडी में उत्तर प्रदेश के अमरोहा के एक मुस्लिम परिवार में ही हुआ था। इनका असल नाम सैय्यद इब्राहिम था। इब्राहिम यानी रसखान का बचपन से ही कृष्ण से लगाव हो गया था और यह इतना बढ़ गया की वह कृष्ण के लिए कविताएं और भक्ति गीत गाने लगें। जीवन की अंतिम सांस भी उन्होंने इसी दिव्य भाव में ली थी। आज भी कृष्ण भक्ति को तब तक पूरा नहीं माना जाता जब तक उसमें रसखान के पदों का रस नहीं मिलाया जाता। रसखान ने जीवन भर कृष्ण और अल्लाह दोनों को प्रेम किया और दोनों के प्रति अपने सभी फर्ज पूरे किये। आज भी आप रसखान की दरगाह देख सकते हैं, जो की वृन्दावन से कुछ किलोमीटर आगे ही स्थित है।
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रसखान का यह समय मुगल काल का था पर अब समय में काफी परिवर्तन आ गया है आज के समय में साम्प्रदायिकता का समय है पर आज भी कई ऐसे व्यक्ति है जो की सांप्रदायिक सद्भाव और सांमजस्य का संदेश लोगों को स्वयं के जीवन से ही दे रहें है। इसी क्रम में आज हम आपको मिलाने जा रहें है लखनऊ के “सईद केसर रज़ा” से, ये लखनऊ के रहने वाले हैं और किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिकता से अलग अपनी ही धुन में मस्त रहते हैं। ईद और रोजे को अपने परिवार और मित्रों के साथ मनाने वाले सईद केसर रज़ा, हर मंगलवार को हनुमान मंदिर जाते हैं और बड़े मंगलवार को वे मंदिर में भंडारे का आयोजन भी करते हैं। रजा इस बारे में पूछने पर बताते हैं कि “हनुमान और हज़रत अली दोनों सामान है, हनुमान बहुत शक्तिशाली देवता है पर उन्हें सिर्फ हिन्दू धर्म तक सीमित नहीं रखा सकता। जब भी कभी मैं परेशानी में होता हूं तो हनुमान मंदिर जाता हूं।”
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केसर रज़ा, बचपन से अपने इलाके के हनुमान मंदिर में जाते रहे हैं, ज्येष्ठ महीने के आखरी मंगलवार को बड़ा मंगल कहा जाता है और इस दिन केसर रज़ा हनुमान मंदिर पर भंडारा करते हैं, पिछले मंगल को केसर रज़ा ने फिर से भंडारा किया था। हालांकि रज़ा, पांचो वक्त की नवाज अदा करते हैं पर जब उनसे हिन्दू और मुस्लिम के बारे में पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि “‘ईद और रमजान को लेकर मेरे मन में जो उत्साह रहता है, वहीं होली और दिवाली को लेकर भी रहता है. जैसे हम दूसरों की भावनाओं की कद्र करते हैं, वैसे ही लोगों को भी चाहिए कि वो हमारी भावनाओं का सम्मान करें, सभी धर्म प्रेम और शांति का संदेश देते हैं, हमें इसी बात का अनुसरण करना चाहिए।”