जब बात रेत पर कलाकारी की आती है तो सबसे पहले लबों पर सुदर्शन पटनायक का नाम आता है। सुदर्शन पटनायक एक ऐसे कलाकार हैं जिनकी पहचान भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्व भर में है। सुदर्शन की रेत पर कलाकारी की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम है। जब बचपन में उनके दोस्त पेन पेंसिल पकड़ा करते थे तब सुदर्शन पुरी के समंदर के किनारे अपने मन की बातों अपनी कला के जरिए जाहिर किया करते थे। आपको बता दें कि रेत पर खूबसूरत कृतियां बनाने वाले सुदर्शन ने रशिया के मॉस्को में आयोजित ‘9वें मॉस्को सैंड स्कल्पचर चैंपियनशिप 2016’ में भाग लिया था, जिसमें उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया है।
सुदर्शन ने 15 फीट ऊंची महात्मा गांधी की कलाकृति बना कर यह पुरस्कार जीता है। इसे जीतने के बाद सुदर्शन ने कहा कि “मुझे खुशी है कि मैंने अपने देश के लिए खिताब जीता है। आर्ट फेस्टिवल के निदेशक पावेल मिनीलकोव ने आज मुझे गोल्ड मेटल और ट्रॉफी अपने हाथों से दी है। मैंने अपनी इस कलाकृति के जरिए ये दिखाने की कोशिश की है कि किस तरह गांधी जी की अहिंसा वाली अवधारणा से विश्व शांति की स्थापना की जा सकती है।” सुदर्शन अपनी कलाकारी की बदौलत कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं। साल 2014 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा गया था।
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पिता ने ठुकराया तो दादी ने अपनाया
सुदर्शन का जन्म साल 1977 में 15 अप्रैल को ओडिशा के पुरी जिले में हुआ था। उनकी जिंदगी के सफर में कई उतार-चढ़ाव आए। जब वो 4 साल के थे तब सुदर्शन के पिता ने उन्हें छोड़ दिया था और उस समय घर की आर्थिक स्थिती भी खराब थी। उस वक्त उनकी दादी ने बुरे वक्त में उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया। उनकी दादी को 200 रुपये पेंशन मिला करती थी और उसी में वो सुदर्शन समेत उनके 3 भाइयों का पालन-पोषण करती थीं। घर की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें आठ साल की उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन वो बचपने से ही चित्रकला से प्यार करते थे। जिसके चलते वो रोज पुरी के समंदर के किनारे रेत से कुछ ना कुछ बनाते थे। अपनी लगन और मेहनत की वजह से वो आज इस मुकाम पर खड़े हैं।