अक्षय तृतीया त्योहार आप सबने मनाया होगा, यह त्योहार इसलिए मनाया जाता है ताकि आपके घर में सुख और समृद्धि की स्थापना हो और आपके घर पर हमेशा शांति बनी रहे पर आपको जानकरी के लिए बता दें की झांसी के तालबेहट नगर के पास के गांव में यह त्योहार नहीं मनाया जाता है, ऐसा नहीं है की वहां पर हिन्दू नहीं रहते हैं पर आज से 150 पहले इस गांव में बने महल में एक ऐसी घटना हुई थी जिसके कारण आज भी वहां के लोग इस त्योहार को नहीं मनाते हैं। इसके बदले में गांव की महिलाएं यहां के किले के द्वार पर बनी 7 लड़कियों की पेंटिंग को इस त्योहार के दिन पूजती है। आइये आपको बता दें की आखिर 150 साल पहले आखिर इस महल में क्या हुआ था।
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महाराज मर्दन सिंह 1850 में ललितपुर क्षेत्र बानपुर के राजा थे, उस समय उनका तालबेहट गांव में आना जाना होता रहता था तो उन्होंने तालबेहट में एक किले का निर्माण कराया। 1857 में मर्दन सिंह ने रानी लक्ष्मीबाई का भरपूर साथ भी दिया था इसलिए उनको एक क्रांतिकारी वीर माना जाता है पर उनके पिता प्रहलाद सिंह ने सारे बुंदेलखंड क्षेत्र को अपनी नीच हरकत से बदनाम कर दिया था। लोगों की मानें तो उस दिन अक्षय तृतीया ही थी और इस दिन नेग मांगने की परंपरा होती है और उस दिन 7 लड़कियां नेग के लिए महाराज मर्दन सिंह के तालबेहट किले में गई। उस समय मर्दन सिंह के पिता राजा प्रहलाद सिंह किले में थे और उन्होंने उन 7 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना लिया। लड़कियों ने इस घटना के बाद में महल से कूदकर अपनी जान दे दी थी।
आज भी सुनाई पड़ती हैं आत्माओं की चीखें –
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यहां के स्थानीय लोगों की माने तो आज भी तालबेहट किले में उन 7 लड़कियों की चीखें सुनाई पड़ती हैं और ये घटना अक्षय तृतीया के दिन ही हुई थी इसलिए यहां पर अब यह त्योहार नहीं मनाया जाता है। यहां के लोग कहते हैं की यह किला आज भी अशुभता का प्रतीक है और खंडहर में बदलता जा रहा है। यहां के निवासी एसएस झा बताते हैं, “कई बार लड़कियों के चीखने की आवास महसूस की जा चुकी है। इसलिए रात ही नहीं, बल्कि दिन में भी यहां लोग जाना ठीक नहीं समझते।” समाजसेवी व अध्यापक भानुप्रताप बताते हैं, “जनता का गुस्सा शांत करने और अपने पिता की करतूत का पश्चाताप करने के लिये राजा मर्दन सिंह ने लड़कियों को श्रद्धांजलि दी थी। उन्होंने किले के मेन गेट पर 7 लड़कियों के चित्र बनवाए थे, जो आज भी मौजूद हैं।”