जहां तक बात “काम” यानी सेक्स की है तो आपको बता दें कि दुनिया की दो महान सभ्यताओं, सनातन हिन्दू सभ्यता और ग्रीक सभ्यता ने इसको मर्यादित और जीवन को बढ़ाने के पुरुषार्थ के रूप एक धार्मिक दर्जा दिया है। हिन्दू धर्म में जहां “रति” नामक एक देवी को इसका अधिपति बताया गया है, वही “काम” को जीवन के चार पुरुषार्थो में भी तीसरा स्थान दिया गया है। दूसरी और दुनिया की महान ग्रीक सभ्यता में भी “‘ऐफ्रोडाइट” नामक एक देवी को “काम” का अधिपति बताया गया है, परंतु यहां हम बात सिर्फ सेक्स की नहीं कर रहें हैं यहां आज हम आपको बता रहें हैं “वैश्यावृत्ति” नामक एक कुप्रथा के बारे जिसको दुनिया की कुछ सभ्यताओं में धार्मिक और पवित्र दृष्टि से देखा जाता था। आइये जानते हैं ऐसी कुछ सभ्यताओं के बारे में।
सबसे पहले आप यह जान लें कि धार्मिक और धर्म के नाम पर की जाने वाली अश्लील क्रियाएं उस समय “पवित्र वैश्यावृत्ति” के अंतर्गत आती थी और कहा जाता है कि इस प्रकार के कार्य में किसी प्रकार के पैसे का कोई आदान-प्रदान नहीं होता था। धर्म और सेक्स के जानकारों ने इस प्रकार की वैश्यावृत्ति को दो भागों में विभाजित किया है।
- स्थाई वैश्यावृत्ति – इसके अंतरगत आने वाली महिलायें सारे जीवन धर्म और सेक्स के मिले-जुले कर्मकांडो से जुड़ी होती थी।
- अस्थाई वैश्यावृत्ति- इसके अंतरगत आने वाली महिला जब तक ब्याह नहीं दी जाती थी तब तक इस प्रकार के कर्मकांडो से जुड़ी होती थी।
ये सभ्यताएं मानती थी वैश्यावृत्ति को पवित्र –
1- यूनानी सभ्यता –
यूनानी सभ्यता की बात करें तो यहां के किंगडम ऑफ़ पोंतुस, केप्पादोसिया जैसे कई शहर इस तथाकथित पवित्र वैश्यावृत्ति के अड्डे थे और जेरुसलम नामक पवित्र नगर के एक मंदिर में इस प्रकार की क्रियाओं को खुलेआम अंजाम दिया जाता था।
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2- नेपाली सभ्यता –
नेपाल में भी काफी समय पहले एक इस प्रकार की प्रथा थी, जिसको धार्मिक कार्यों से जोड़ कर देखा जाता था। उस समय इस क्रिया को “देउकी” कहा जाता था और इसके लिए कई लड़कियों को मंदिर ले जाया जाता था और उनको वैश्या बना दिया जाता था।
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3- पाश्चात्य सभ्यता –
पाश्चात्य सभ्यता को आज के लोग आधुनिक सभ्यता कहते हैं और इसमें आज के युवा काफी अच्छे से रचे हैं पर आपको बता दें कि 1980 के दौरान कुछ ऐसे समुदायों का पता लगा जो की इस पवित्र वैश्यावृत्ति की प्रक्रिया के लिए नवविवाहित स्त्री को चुनते थे। इसको उस समय “फ्लर्टी फिशिंग” के नाम से जाना जाता था पर बाद में जब एड्स की जागरूकता के कार्य बड़े पैमाने पर चले तब इसको बैन कर दिया गया था।