भारत ने अफ्रीकी देशों को राजनीतिक, कारोबारी और सांस्कृतिक आधार पर जोड़ने की शुरूआत कर दी है। वैसे तो भारत और अफ्रीका के संबंध काफी पुराने हैं, लेकिन कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर जैसे संबंध होने चाहिए थे वे अब तक नहीं बन पाए हैं। वर्ष 1983 के गुट निरपेक्ष सम्मेलन के बाद देश में होने जा रहे सबसे बड़े अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने कमर कस ली है। इस आयोजन की तैयारियां काफी लम्बे समय से चल रही थी। सरकार ने स्वयं केंद्र के तमाम मंत्रियों के द्वारा अफ्रीकी राष्ट्र अध्यक्षों को निमंत्रण भेजा था। पिछले काफी समय से अफ्रीका के देश काफी तेजी से आर्थिक विकास कर रहे हैं। अफ्रीका के बढ़ते हुए आर्थिक विकास को देखते हुए अमेरिका, चीन और यूरोपिय संघ भी अफ्रीका की ओर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।
कारोबारी रिश्तों की दृष्टि से देखें तो भारत अफ्रीका से निम्न कारणों से पीछे है, क्योंकि–
1- भारत अफ्रीकी देशों के साथ सिर्फ 72 अरब डॉलर का कारोबार करता है।
2- भारतीय कंपनियों ने केवल 25 अरब डॉलर का ही निवेश अफ्रीका में किया है।
3- भारत ने अफ्रीका के कुछ देशों में इंजीनियरिंग और आईटी संस्थान भी स्थापित किए हैं।
भारत इस सम्मेलन के बहाने अफ्रीका के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत करने मे जुटा है। कहीं न कहीं इस सम्मेलन की मदद से भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सीट के लिए समर्थन भी जुटाना चाहता है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही कई देशों की यात्रा की है और सभी जगह उन्होंने स्थायी सीट के मुद्दे को उठाया है तथा पीएम नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में भी यह मुद्दा उठा सकते हैं।