कर्नाटक के मेंगलोर शहर के निवासी हरेकला हजब्बा ऐसे तो पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन अपने गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए इन्होंने संतरे बेचकर गांव के गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवाया था। इतना ही नहीं, अब वह गांव के बच्चों के लिए कॉलेज बनाने की तैयारी भी कर रहे हैं।
हजब्बा मेंगलोर से 25 किलोमीटर दूर हरेकला के पास के एक गांव में रहते हैं। उनका जन्म काफी गरीब परिवार में हुआ था। घर की जरूरतों को पूरा करने के कारण वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। घर का खर्च चलाने के लिए उन्होंने पहले बीड़ी बनाने का काम शुरू किया, उसके बाद संतरे बेचने का काम करने लग गए। गांव के लोगों के लिए वह किसी संत से कम नहीं हैं। इस कारण उन्हें अक्षरा सांता के नाम से भी जाना जाता है।
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हजब्बा बताते हैं कि एक बार संतरे बेचते बेचते उन्हें दो विदेशी यात्री दिखें, जो संतरे खरीदना चाहते थे, लेकिन उन्होंने अंग्रेजी में जो कुछ कहा, वह हजब्बा के पले नहीं पड़ा और वह विदेशी यात्री उन्हें छोड़कर चले गए, उन्हें शर्म आ गई। वह नहीं चाहते कि किसी और को इस अनुभव से गुजरना पड़े। उस दिन हजब्बा ने ठान लिया कि अपने गांव के बच्चों के लिए एक स्कूल जरूर निर्माण करवाएंगे।
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पत्नी के लाख मना करने के बावजूद हजब्बा ने साल 1999 में हजब्बा के सपने को उड़ान मिली और उन्होंने अपने गांव में एक मदरसा खोला। हालांकि बाद में उनकी पत्नी इस बात को समझ गईं और स्कूल निर्माण में उनका साथ देने लगी। स्कूल शुरू हुआ तो उस समय स्कूल में कुछ 28 छात्र पढ़ते थे। हालांकि बाद में छात्रों की संख्या बढ़ने लगी।
धीरे धीरे उन्होंने जमीन का एक टुकड़ा लिया और उस पर स्कूल निर्माण का काम शुरू कर दिया। इस स्कूल में सिर्फ मुस्लमान बच्चे ही नहीं बल्कि हर धर्म के बच्चे पढ़ने आते हैं। वह सचमुच प्रशंसा के पात्र हैं, लेकिन यह खबरों में बनना नहीं चाहते थे।
हजब्बा की कहानी सिर्फ स्कूल तक आकर खत्म नहीं होती, उन्होंने अपने गांव में सरकारी कॉलेज बनाने की योजना भी बनाई है। जिस पर काम करना शुरू हो गया है।