15 अगस्त हमारे देश की आजादी का दिन, जहां हर साल देश के लिए शहीद हुए नौजावानों को याद कर उन्हें आश्रूपूर्ण श्रद्धांजलि दी जाती है। वहीं देश को आजादी दिलाने वाले जो सपूत जीवित है उनकी ओर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। आज के समय में इनके हालातो को देखा जाए, तो आपको भी हैरानी होगी कि देश की सेवा करने की सजा इतनी बड़ी भी हो सकती है, जो इन सपूतों को एक वक्त की रोटी की तलाश में भीख मांगने को मजबूर होना पड़े। ये बात किसी एक सेनानी की नहीं है ऐसे कितने ही देश के लिए लड़ाई लड़ने वाले देशभक्त सिपाही है जो रोटी की तलाश में सड़क पर आ भीख मांगने को विवश हो चुके है। इसे सरकार की विवश्ता कहें या विकलांगता जिनके कंधे इनका बोझ उठाने के काबिल नहीं है। आज हम आपको ऐसे ही एक वीर सिपाही के बारे में बता रहे है। जिनकी उम्र करीब 90 वर्ष की हो चुकी है। जिसे कभी आजाद हिन्द सेना में शामिल होने में बड़ा गर्व होता था, झांसी में रहने वाले श्रीपत नेता सुभाषचंद्र बोस के भाषणों से प्रभावित होकर आजाद हिन्द सेना में शामिल हुए थे। जिन्होनें बिना किसी स्वार्थ के देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन आज श्रीपत के हालात यह है कि उन्हें अपनी जिंदगी गुजर-बसर करने के लिए भीख मांगने की जरूरत पड़ रही है।
बताया जाता है कि एक समय ऐसा भी था जब इनकी जिंदगी काफी अच्छी चल रही थी स्वतंत्रता सेनानी श्रीपत के पास उन दिनों झांसी में 7 एकड़ जमीन और एक लाइसेंसी बन्दूक भी थी, लेकिन इनकी किस्मत ने इन्हें ऐसा धोखा दिया कि यह पूरी तरह से तबाह हो गए। इनके बेटे का किया पूरे परिवार को भुगतना पड़ा। श्रीपत का बेटा तुलसिया नशे एवं जुए का आदि था उसकी उस बुरी लत ने अपनी पिता की सारी संपत्ति को बेच कर उन्हें सड़क पर रहने को मजबूर कर दिया, और आज वो इस बुढ़ापे में अपना और अपनी पत्नि का पेट पालने के लिए सड़क पर भीख मांग रहें हैं। जब तक श्रीपत के शरीर नें उनका साथ दिया तब तक वह खेतों में मजदूरी कर अपना गुजारा करते रहें। पर इस ढलती उम्र के कारण हाथ-पैरों ने भी उनका साथ देना छोड़ दिया है। जिनके चलते अब वो भीख मांगने पर मजबूर हो गए।
देश के लिए आज भी मर मिटने का जज्बा बनाए श्रीपत कहते है कि आज भी वो देश के लिए कुछ करने के इच्छा रखते है। वो मेरा सौभाग्य ही था कि मैं नेताजी के साथ रहकर उनकी सेना में सम्मलित हुआ और देश के लिए कुछ कर सका l आज के हालात ये है कि श्रीपत अपनी पत्नी के साथ हंसारी में एक झोपड़ी में रहकर अपनी जिंदगी की एक नई लड़ाई लड़ रहे हैं।
इनकी दुर्दशा समाज के सामने यह एक प्रश्न रखती है कि श्रीपत का ही नहीं है ऐसे कई स्वतत्रंता सेनानी है जो आज भी अपनी भूख की लड़ाई खुद ही लड़ रहे है। इनका ध्यान सरकार की ओर से विमुख है। जिनकी मेहनत से देश की नींव मजबूत हुई, आज वो ही इस नींव में दबकर अपनी आखिरी सांस गिन रहे है।…