यह सब जानते हैं कि प्राचीन संस्कृति वाले देश भारत में प्रतिवर्ष दुनिया के कोने-कोने से लोग घूमने आते हैं और यहां की संस्कृति और सभ्यता को करीब से जानते हैं। अपनी भारत यात्रा के दौरान पर्यटकों को जो चीज सबसे ज्यादा पसंद आती है वह हैं भारत की प्राचीनतम मंदिर। मंदिरों की बनावट, विशेषता, महत्व और इतिहास आदि जानने के लिए ही पर्यटक बार-बार भारत की ओर रुख करते हैं। इनमें से कई मंदिर तो ऐसे हैं जो कई हजारों साल पुराने हैं। बहुत से ऐसे मंदिर भी यहां हैं जो बहुत ही रहस्यपूर्ण हैं। हम आपको ऐसे ही एक रहस्यपूर्ण मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो स्वयं गायब हो जाता है और स्वयं ही वापस आ जाता है।
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यह रहस्यपूर्ण मंदिर स्तंभेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है और यह कावी (गुजरात) में स्थित है। आप यह कल्पना नहीं कर सकते, लेकिन यह बात सच है कि यह मंदिर पल भर के लिए ओझल हो जाता है और फिर थोड़ी देर बाद अपनी उसी जगह वापस भी आ जाता है। यह मंदिर अरब सागर के बिल्कुल सामने है और वडोदरा से 40 मील की दूरी पर है। खास बात यह है कि आप इस मंदिर की यात्रा तभी कर सकते हैं जब समुद्र में ज्वार कम हो। ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है।
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मान्यता-
स्कंदपुराण के अनुसार शिव के पुत्र कार्तिकेय छह दिन की आयु में ही देवसेना के सेनापति नियुक्त कर दिए गए थे। इस समय ताड़कासुर नामक दानव ने देवताओं को अत्यंत आतंकित कर रखा था। देवता, ऋषि-मुनि और आमजन सभी उसके अत्याचार से परेशान थे।
ऐसे में भगवान कार्तिकेय ने अपने बाहुबल से ताड़कासुर का वध कर दिया। उसके वध के बाद कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शंकर का परम भक्त था। यह जानने के बाद कार्तिकेय काफी व्यथित हुए। फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे वधस्थल पर शिवालय बनवाएं। इससे उनका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। कहा जाता है यह वही शिवालय है जो कार्तिकेय ने बनाया था।
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शांत और आध्यात्मिक वातावरण-
मंदिर के पश्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर स्वयं विराजमान हुए। इसी कारण से इस तीर्थ को स्तंभेश्वर कहते हैं। यहां पर महिसागर नदी का सागर से संगम होता है। यहां पर श्रद्धालुओं के लिए हर तरह की सुविधाएं मौजूद हैं जैसे- कमरे, छोटी सी रसोई जो साल भर पारंपरिक गुजराती भोजन मुफ्त में प्रदान करती है। इस मंदिर का वातावरण बहुत शांत और आध्यात्मिक रहता है।
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पर्व-त्योहार-
इस मंदिर में महाशिवरात्रि और हर अमावस्या पर मेला लगता है। प्रदोष, पूनम और एकादशी पर यहां दिन-रात पूजा-अर्चना होती रहती है। दूर-दूर से श्रद्धालु समुद्र द्वारा भगवान शिव के जलाभिषेक का अलौकिक दृश्य देखने यहां आते हैं।