हिमाचल प्रदेश में बना ज्वाला देवी मंदिर आज करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र है, यहां पर हजारों साल से जल रही ज्वाला के रहस्य के बारे में आज तक कई बार बड़े-बड़े माध्यमो से पता लगाने की कोशिश की गई पर आज तक किसी को भी यहां स्वयं ही प्रज्वलित होने वाली ज्वाला के बारे में पता नहीं चल सका है। वैसे तो भारत में शक्ति पूजा के लिए बहुत से मंदिर बने हुए हैं पर यह मंदिर अपने आप में अनोखा है क्योंकि इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि यह एक बिना मूर्ति का मंदिर हैं। इस मंदिर में किसी मूर्ति की उपासना नहीं होती बल्कि यहां स्वयं ही प्रज्वलित 9 दिव्य ज्वालाओं की उपासना देवी के रूप में ही की जाती है। इस मंदिर को भारत के शक्तिपीठों में गिना जाता है, इसके संबंध में यह मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर को खोजने का कार्य पांडवों ने अपने समय में किया था पर इस मंदिर का निर्माण पंजाब के राजा रणजीत सिंह और संसार चंद सिंह ने 1835 में कराया था। इस मंदिर में हमेशा ही 9 ज्वालाएं स्वयं ही जलती रहती हैं और इन ज्वालाओं के बारे में जानने के लिए यहां पर कई प्रकार की खुदाई और जांच भी हो चुकी होती है। आइये जानते हैं इस मंदिर में जलने वाली ज्वालाओं के रहस्य को जानने के लिए अब तक की गई खोज की जानकारियों के बारे में।
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1- ONGC की जांच –
जानकारी के लिए आपको बता दें कि पिछले लंबे अरसे से इस स्थान पर ONGC जांच में जुटी हुई है। असल में कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि इस धरती के गर्भ में कहीं बड़ा गैस भंडार है जिसके कारण ही मंदिर की ज्योतियां जलती हैं पर ONGC ने अपनी लंबी जांच में धरती के अंदर कई किमी की खुदाई करके भी जांच करके देख ली पर आज तक इस जमीन में कहीं कोई तेल या गैस का भंडार नहीं मिला।
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2- फ्रंटियर बेसिन की जांच –
ONGC ने एक लंबे समय तक इस स्थान पर रिसर्च की पर कुछ हाथ नहीं आया इसके बाद में वर्तमान में ONGC ने इस कार्य की जिम्मेवारी फ्रंटियर बेसिन- देहरादून को सौंप दी है। यह कंपनी इस बार जिन मशीनों का प्रयोग खुदाई के लिए कर रही है वे मशीने जमीन के अंदर 8000 मीटर तक खुदाई कर सकती हैं मतलब साफ है इस बार अत्याधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा है। फ्रंटियर बेसिन देहरादून के महानिदेशक डा. डीके श्रीवास्तव इस बारे में कहते हैं कि “इसके लिए प्रदेश सरकार ने ड्रिलिंग को 2 वर्षों की अनुमति प्रदान की है जिससे प्रदेश में तेल व गैस की खोज के प्रयासों में और तेजी आएगी। उन्होंने बताया कि कंपनी द्वारा हाल ही में ज्वालामुखी के पास सुरानी गांव में ड्रिलिंग की गई थी, जिसमें तेल व गैस के भंडार होने के आसार मिले हैं व कंपनी जल्द ही आधुनिक उपकरणों के साथ एक बार फिर यहां संभावनाएं तलाशने पहुंच सकती है।”
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3- बादशाह अकबर द्वारा कराई जांच –
इतिहास में बादशाह अकबर द्वारा इस मंदिर की कराई जांच का भी वर्णन मिलता है जिसके अनुसार जब बादशाह अकबर को इस मंदिर के बारे में जानकारी हुई तो उनको इस मंदिर के बारे में जानकर बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने इसकी सत्यता को परखने के लिए स्वयं ही वहां जाने का निर्णय लिया। बादशाह अकबर अपने लाव-लश्कर के साथ में ज्वाला देवी मंदिर पहुंचे और जलती हुई जोत के दर्शन किये पर वे सिर्फ इन जोतों को देख कर संतुष्ट नहीं हुए बल्कि यहां की जोतों को बुझाने के कई कार्य किये और अंत में एक पानी की नहर ही खुदवा दी जो की इस मंदिर में जलने वाली ज्योत की ओर आती थी पर सभी कुछ करने के बाद में यहां की जोत नहीं बुझ पाई और बादशाह अकबर को यह मानना ही पड़ा कि इस स्थान पर बड़ी दिव्य शक्ति का निवास है। इसके बाद में अकबर ने इस स्थान पर माता को एक 50 किलो का सोने का छत्र चढ़ाया बादशाह के अहंकार के कारण उसका वह छत्र स्वीकार नहीं हुआ और वहीं धरती पर गिर कर किसी अन्य धातु में बदल गया, जो की आज भी वहीं पड़ा हुआ है जिसको दर्शक देखते हैं।
इतनी खोजे होने के बाद भी यहां जलने वाली ज्वालाओं के रहे का आज तक किसी को पता नहीं लगा है इसलिए ही आज करोड़ो लोग देश-दुनिया से इस स्थान पर आते हैं और यहां पर अपने जीवन को सफल बनाते हैं।