आज के समय में जहां धर्म के नाम पर आए दिन झगड़े और दंगे फसाद हो रहे हैं वहीं, इन सब के बावजूद आज भी कुछ लोग इंसानियत को ही ज्यादा महत्व देते हैं। कुछ ऐसा ही देखने को मिला भारत का दिल कहे जाने वाले कश्मीर में। दक्षिण कश्मीर में कुलगाम जिले के एक गांव में एक 84 वर्षीय कश्मीरी पंडित का निधन होने पर यहां के मुस्लिमों ने मिल कर उनका अंतिम संस्कार किया। यहां आपको यह भी बता दें कि इस कश्मीरी पंडित ने भी आतंकवादियों के डर से घाटी छोड़ने वाले अपने पूरे परिवार के साथ यहां से जाने के बजाय अपनी जड़ों से जुड़े रहने का ही फैसला लिया था।
जानकारी के अनुसार कुलगाम के मावलान में रहने वाले जानकी नाथ 84 का बीते शनिवार को निधन हो गया था। जानकी नाथ बीते कई वर्षों से यहां अकेले ही रह रहे थे। ऐसे में उनकी मृत्यु होने पर यहां रह रहे कश्मीरी पंडितों ने जानकी नाथ के परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू की। सारी व्यवस्थाएं करने के बाद पूरे रीति रिवाज के साथ जानकी नाथ का अंतिम संस्कार किया गया। इसके लिए जानकी के पड़ोसियों ने मिल कर सारा इंतजाम किया था। इस दौरान सभी लोग काफी दुखी थे।
कोई मानता था बड़ा भाई, तो कोई एक नेक इंसान-
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यहां रहने वाले गुल मोहम्मद अलई ने बताया कि जानकी के निधन से उनका पूरा परिवार काफी दुखी है। ऐसा लग रहा है जैसे हमने अपने किसी बेहद करीबी को खो दिया है। उन्हें मैं बड़े भाई की तरह मानता था।
गुलाम हसन ने कहा कि धर्म, जाति को कभी इंसानियत के बीच में नहीं लाना चाहिए। एक आम नागरिक होने के नाते अपने पड़ोसियों की मदद करना हमारी जिम्मेदारी थी। जानकी नाथ ने भी हमें कभी पराया नहीं समझा। वह हमेशा हर परिस्थितियों में हमारे साथ खड़े रहे।
5000 मुस्लिमों के बीच थे अकेले-
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मालवान की करीब 5000 मुस्लिम आबादी के बीच जानकी नाथ अकेले कश्मीरी पंडित थे। 1990 में जब कश्मीरी पंडित आतंक के बढ़ते प्रभाव से डरवश घाटी छोड़ रहे थे तब जानकी ने यहां से ना जाने का निर्णय लिया। इसी साल वह सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त भी हुए थे। निधन से पूर्व बीते कुछ महीनों से जानकी नाथ बीमार चल रहे थे। इस समय भी उनके पड़ोसियों ने उनकी देखरेख करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।