वर्तमान समय में महाराष्ट्र के “शनि शिंगणापुर धाम” का नाम महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवादों में घिरा है। यह विवाद अभी ख़त्म भी नहीं हुआ था कि मुस्लिम महिलाओं ने प्रसिद्ध दरगाह “हाजी अली” में प्रवेश की अनुमति को लेकर नया विवाद शुरू कर दिया है। इन मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि प्रत्येक मज़हब हर किसी को सामान अधिकार देता है और ऐसा ही इस्लाम में भी है। फिर क्या कारण है कि हम लोगों को किसी भी दरगाह पर जाने की अनुमति धर्मगुरुओं द्वारा नहीं दी गई है। कई मुस्लिम महिलाओं के संगठनों ने हाजी अली की दरगाह में अपने प्रवेश के अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया।
Image Source :http://images.newsworldindia.in/
इन मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि जब इस्लाम में औरतों का दरगाह पर जाना मना नहीं किया गया है, तो ऐसे में हमारे अधिकारों का हनन क्यों किया जा रहा है। विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहीं इस्लामिक स्टडीज की प्रोफ़ेसर जीनत शौकत अली ने कहा कि “किसी भी धर्म में लेडीज को लेकर कोई बंधन नहीं है। बंधन सिर्फ पितृसत्ता की ओर से ही लगाया जाता है।” उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि “मुझे इस्लाम की जानकारी है। इस्लाम में यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि महिलाएं दरगाह पर नहीं जा सकती हैं। जब इस्लाम हमें अपने हक़ से महरूम नहीं करता है तो इन पुरुषों को हमारे ऊपर मनचाहे कानून चलाने का हक़ किसने दिया। महिलाओं के साथ भेदभाव सही नहीं है।”
जानकारी के लिए बता दें कि दरगाह हाजी अली पर मुस्लिम महिलाओं के हक़ के लिए लड़ने वाले एक संगठन ने केस भी कर रखा है। उनका कहना है कि दरगाह के ट्रस्टीज महिलाओं को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं देते हैं, जो कि महिलाओं के अधिकारों का हनन है। इस पर दरगाह के ट्रस्टीज का कहना है कि यह दरगाह एक सूफी संत की है। यहां पर महिलाओं को किसी भी सूरत में प्रवेश की अनुमति देना गंभीर पाप होगा। ट्रस्टीज का कहना है कि इस्लामी शरीयत के हिसाब से महिलाओं का पुरुष संतों की दरगाह पर जाना सही नहीं माना जाता है।
Image Source :http://s3.firstpost.in/wp-content/
यहां यह भी बता दें कि मुस्लिम महिलाओं के हक़ की लड़ाई लड़ने वाला यह संगठन दरगाह के साथ कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। इस संगठन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में महिलाओं के दरगाह में प्रवेश को लेकर याचिका भी डाली हुई है। अब देखना यह है कि शनि शिंगणापुर धाम और दरगाह हाजी अली के इस विवाद में पड़ला किसका भारी पड़ता है। वैसे तो संविधान प्रत्येक स्त्री-पुरुष को सामान अधिकार ही देता है।