दो विरोधी पार्टी के बीच खड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्रियों पर अब सियासी जंग छिड़ चुकी है। जिसमें पुराने से पुराने दस्तावेजों को खोदकर मोदी की डिग्रियां दिखाई जा रही हैं। एक तरफ आप पार्टी के कार्यकर्ता मोदी की मार्कशीट को फर्जी बता रहे है तो वहीं दूसरी ओर गुजरात यूनिवर्सिटी के कुलपति उन्हे सही बताकर उनके नाम का हल्का सा परिवर्तन करने की बात कर उसे सही साबित कर रहे हैं। अब देखना ये है कि इस सियासी जंग के बीच फंसी डिग्री का सच क्या है….
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यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति महेश पटेल के द्वारा बताई गई जानकारी के अनुसार मोदी ने 1981 में अपनी डीयू की डिग्री के आधार पर एम.ए. पार्ट-1 में एडमिशन के दौरान अपना नाम नरेंद्र कुमार दामोदरदास मोदी लिखा था। लेकिन एम.ए. पार्ट-2 के फॉर्म में उन्होंने अपने नाम से ‘कुमार’ शब्द को अलग कर दिया और फॉर्म में अपना नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी लिखा जो यूनिवर्सिटी के हिसाब से उचित था। इसके आधार पर एम ए फाइनल की डिग्री भी एमए पार्ट-2 में लिखे गए नाम के आधार पर ही घोषित की गई। जिसमें हर चीज उचित थी। उस समय कम्प्यूटर पद्धति का उपयोग ना होने के काऱण पूरी मार्कशीट हाथ से ही बनाई जाती थी। जिसके तहत हर उम्मीदवार अपने नाम में थोड़ा बहुत हेर फेर कर सकता था और आज के समय में हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम में कम्प्यूटर पद्धति का उपयोग किया जा रहा है जिसके तहत एडमिशन के दौरान लिखे गये नाम को ही सभी डिग्रियों में लागू किया जाता है और इनमें आप किसी तरह का भी बदलाव नहीं कर सकते।
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इसी तरह से मोदी ने एमए पार्ट-1 में कुल 400 अंकों में से 237 नंबर हासिल किए थे जबकि एमए पार्ट-2 में कुल 400 अंकों में उन्हें 262 अंक मिले थे कुल मिलाकर 800 में से 499 अंक लेकर 62.3% अंक की सूची बनकर तैयार हुई। और प्रथम श्रेणी में पास होकर अपने एम ए में सफलता हासिल की।