नवरात्रों के दौरान मंदिरों में पूरे नौ दिन श्रृद्धालु भक्ति भाव के साथ मां की पूजा अर्चना करते हैं। आज के दिन नव दुर्गा की सातवीं शक्ति मां कालरात्रि की पूजा होती है। काल से रक्षा करने वाली इस दैवीय शक्ति को कालरात्रि के नाम से बुलाया जाता है।
कहते हैं कि मां दुर्गा की सातवीं शक्ति, मां काली की पूजा का एक विशेष महत्व होता है। क्योंकि इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है। आज ही के दिन समस्त सिद्धियों के द्वार भी खुलते हैं। सातवीं शक्ति मां काली की पूजा करने से हमारे जीवन में आने वाली सभी ग्रह बधाएं दूर होती हैं। मां काली अग्नि-भय,जल-भय,जंतु-भय,शत्रु-भय,रात्रि-भय जैसी बाधाओं को दूर करती है। तेज रूप वाली इस मां का स्वरूप भले ही काफी विकराल है इनके बिखरे हुए केश,अधंकार की तरह गहरा काला रंग, आखों से अग्नि की वर्षा के समान तेज से मां कालरात्रि अपने विकट रूप में नजर आती हैं। पर अपने भक्तों के लिए उतनी ही ममतामयी और सबका कल्याण कर शुभ फल प्रदान करने वाली मां हैं। इनकी उपासना करने से उपासक के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
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कहा जाता है कि जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण किया था उस समय ब्रह्मा,विष्णु एवं महेश जी का प्रकटीकरण हुआ उससे पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन देवियों को भी उत्पन्न किया। जब देवी ने इस सृष्टि का निर्माण शुरू किया और ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का प्रकटीकरण हुआ उससे पहले देवी ने अपने स्वरूप से तीन महादेवीयों को भी उत्पन्न किया। सर्वेश्वरी महालक्ष्मी ने ब्रह्माण्ड को अंधकारमय और तामसी गुणों से भरा हुआ देखकर सबसे पहले तमसी रूप में जिस देवी को उत्पन्न किया वह देवी ही कालरात्रि हैं।
उपासना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्मा खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभयंकरी ||