बुलंद हौसले और दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर आसमान को भी झुकाया जा सकता है। भोपाल में रहने वाले एक आठ साल के बच्चे ने इस बात को अपनी लगन से सच कर दिखाया है। यह बच्चा हर रोज तीस किलोमीटर दौड़ता है और मिल्खा सिंह की तरह दौड़कर देश का नाम रोशन करना चाहता है।
देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बस इन प्रतिभाओं को थोड़ा तराशने की जरूरत है। मध्यप्रदेश में रहने वाले नन्हे शशांक ने अपनी प्रतिभा से लोगों का ध्यान अपनी तरह खींचा है। तीसरी क्लास में पढ़ने वाला शशांक बाथम रोजाना तीस किलोमीटर दौड़ता है। पिछले दिनों मध्य प्रदेश के महू से भोपाल में रन भोपाल रन मैराथन में हिस्सा लेने आए सबसे कम उम्र के शशांक ने ग्यारह किलोमीटर की दौड़ में प्रोफेशनल धावकों को भी पछाड़ दिया। शशांक ने इस दौड़ को मात्र 59 मिनट में पूरा किया। नन्हें से धावक के इस प्रदर्शन को देखकर वहां मौजूद सभी हैरान रह गए। शशांक से उम्र में कई गुना बड़े धावकों ने इस दौड़ को 45 मिनट में पूरा किया।
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शशांक के पिता ने बताया कि शशांक रोज 30 किलोमीटर दौड़ कर भी थकता नहीं है। उसके पिता चाहते हैं कि उनके बेटे को बेहतर ट्रेनिंग मिले ताकि वो और अच्छा प्रदर्शन कर सके। फिलहाल अभी शशांक के पिता इंटरनेट से जानकारी लेकर ही अपने बेटे को ट्रेनिंग दे रहे हैं। देश की इस प्रतिभा का भविष्य अंधकार में न जाए इसलिए शशांक के अभिभावक चिंतित हैं। शशांक के प्रेरणास्त्रोत फलाइंग सिख मिल्खा सिंह हैं। वह चाहता है कि बड़ा होकर मिल्खा सिंह की तरह ही दौड़े और देश का नाम रोशन करे।
देश में अधिकतर प्रतिभाएं अच्छे कोच की कमी के चलते दम तोड़ देती हैं। हमारे देश में भी खिलाड़ियों को अच्छा मार्गदर्शन मिले तो विश्व पटल पर तिरंगे का परचम लहराया जा सकता है। खेल की खोज के प्रति सरकार के उदासीन रवैय्ये के चलते ही अच्छे खिलाड़ी अपनी परफॉर्मेंस को सुधार नहीं पाते। अब देखना होगा कि क्या इस लिटिल मिल्खा को कोच का मार्गदर्शन मिल पाएगा या नहीं।