सर सइद वजीर हसन – जिनके सामने अंग्रेज वकील भरते थे पानी, जानें इनके बारे में

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी। इसी लखनऊ से गुजरती है गोमती नदी और इसी गोमती नदी के किनारे से शुरू होती है “वजीर हसन रोड” जो आज का पॉश इलाका है। यह इलाका आज लखनऊ में जितना फेमस है। उससे ज्यादा फेमस है सर सइद वजीर हसन का जीवन। लेकिन  बहुत कम लोग ही उनके बारे में जानते हैं। खासकर जो लोग लखनऊ में नहीं रहते हैं। इसलिए ही आज हम आपको बता रहें हैं। इस व्यक्ति के जीवन के वो पहलू जो आपको शायद ही कहीं जानने को मिलेंगे।

सर सइद वजीर हसनImage source:

सबसे पहले आपको बता दें की सइद वजीर हसन लखनऊ के रहने वाले नहीं थे बल्कि वे जौनपुर के रहने वाले थे। वहां उनका जन्म 1873 में हुआ था। सइद वजीर हसन के पिता जी के पास काफी धन दौलत थी सो वे चाहते थे की उनका बेटा बड़ा होकर उसकी जायदाद को सम्हाले लेकिन वक्त को शायद यह मंजूर नहीं था। बड़ा होकर सइद वजीर हसन ने ताऊ किया की वे आगे की शिक्षा अंग्रेजी में लेंगे सो घर वालों से लड़ लड़ा कर “मुइर सेंट्रल कॉलेज” इलाहबाद में दाखिला लिया तथा उसके बाद में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली। आपको बता दें की 1921 में अवध बार एसोसिएशन के वे पहले भारतीय मेंबर थे जिनको एडिशनल जुडिशल कमिश्नर का पद प्रदान किया गया था। 1925 में वे अवध चीफ कोर्ट के जस्टिस ऑफ़ द कोर्ट बने तथा 1930 में वे चीफ जज ऑफ़ द चीफ कोर्ट बने। 1932 में अंग्रेज सरकार ने उनको “सर” की उपाधि प्रदान की थी। सर सइद वजीर हसन के बारे में यह कहावत मशहूर है की उन्होंने कभी कोई केस नहीं हारा था। इसके बाद एक जज के तौर पर वे जो फैसला दे देते थे उसकी काट ब्रिटिश कोर्ट जजों में भी नहीं थी।

सर सइद वजीर हसनImage source:

आपको यह भी बता दें की सर सइद वजीर हसन के बेटे सज्जाद ज़हीर एक अच्छे साहित्यकार थे तथा उन्होंने ने ही प्रोग्रेसिव राइटर एसोसिएशन की स्थापना की थी। जानें मानें साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद इसी एसोसिएशन से जुड़े एक साहित्यकार थे। कहा जाता है की सर सइद वजीर हसन की उस जमाने में फीस एक लाख रूपये होती थी। सबसे अजीब बात यह है की सर सइद वजीर हसन अपनी फीस को सिक्कों की शक्ल में लेते थे। उनके घर वजीर मंजिल में उस समय बैलगाड़ियां आती थीं। जिनमें सिक्के भरे होते थे। सिक्कों को वजीर मंजिल में उतारते समय वहां का वातावरण उनकी खनक से गुंजायमान हो जाता था।

मुहम्मद अली जिन्ना से सइद वजीर हसन के अच्छे तालुकात थे पर वे अलग मुस्लिम देश बनाने के पक्षधर नहीं थे। मुस्लिम लीग के 24 वे अधिवेशन में 11-12, 1936 को उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोरदार भाषण दिया था। वजीर हसन के पंडित नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू तथा मौलाना आजाद से भी करीब संबंध थे। उनका सबसे यादगार मुकदमा “हिंदुस्तान टाइम्स अवमानना केस” रहा है। इस केस में उन्होंने प्रेस की आजादी को लेकर जोरदार बहस की थी तथा इस मुकदमें को लेकर उन्होंने ही प्रेस के कई मौलिक सिद्धांतों को स्थापित किया था। सर सइद वजीर हसन की मृत्यु 1947 में हो गई थी। आज भी वे लखनऊ के उन लोगों में शुमार हैं। जिन्होंने उत्तर प्रदेश के लखनऊ का नाम वास्तव में उज्जवल किया है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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