देशभक्ति – 18 साल की उम्र में देश के लिए फांसी पर झूल गया था यह बालक

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देश को आजाद करने के लिए अनगिनत लोगों ने अपनी जान दी थी और इनमें से युवा लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी। आज हम आपको एक ऐसे युवक के बारे में बता रहें हैं जिसने देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, आइये जानते हैं इस युवक के बारे में।

मात्र 18 साल की कम उम्र में देश के लिए फांसी का फंदा चूमने वाले इस युवक का नाम है “खुदीराम बोस”, यह युवक देश की आजादी लिए इस जंग में कूदने वाला सबसे पहला कम उम्र का शख्स था। इस शख्स का जन्म बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में 3 दिसम्बर 1889 को हुआ था। बचपन में ही माता-पिता को खो चुके खुदीराम बोस की जिम्मेदारी उनकी बड़ी बहन ने उठाई। खुदीराम अपने स्कूल के समय से ही राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। खुदीराम कक्षा 9 के बाद में अपनी पढ़ाई छोड़ 1905 में हुए बंगाल विभाजन के बाद पूरी तरह से देश की आजादी की लड़ाई में उतर गए। वह रेवल्यूशन पार्टी सदस्य बने और उस दौरान वह “वंदे मातरम” के पर्चे लोगों में बांटा करते थे।

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6 दिसम्बर 1907 में नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किये बम धमाके में इनका ही हाथ था। किंग्सफोर्ड नामक एक जज उस समय क्रांतिकारियों को बहुत सख्त सजा देने के लिए प्रसिद्ध था। उस समय उसकी तैनाती मुजफ्फरपुर में थी तब उसको वहीं मारने का प्लान बनाया गया और इस कार्य के लिए प्रफ्फुल चंद्र चाकी के साथ में खुदीराम बोस को चुना गया। 30 अप्रैल 1908 को किंग्सफोर्ड जज एक स्थानीय क्लब जाने के लिए अपनी बग्घी पर निकाला था और उस समय ही बिल्कुल वैसी ही बग्घी पर मिसेज कैनेडी उनकी लड़की भी थी। दोनों क्रांतिकारियों ने धोखे से मिसेज कैनेडी वाली बग्घी पर बम डाल दिया जिसके कारण उनकी मौत हो गई, ये दोनों युवक भी लगभग 25 किमी भागने के बाद में पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। इस दौरान प्रफुल्ल चंद्र ने अपने को गोली मार ली और खुदीराम जीवित अवस्था में पकड़े गए।

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इसके बाद में उन पर मौत का मुकदमा चला और खुदीराम को 13 जून को मौत की सजा सुना दी गई तथा 11 अगस्त 1908 को मात्र 18 साल की उम्र में खुदीराम को सुबह 6 बजे फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके बाद में बंगाल में खुदीराम पर बहुत से गीत और कविताएं लिखीं गई जिनको लोग बहुत फक्र से गाते थे। देखना चाहिए की उस समय में कितनी प्रतिकूलताओं के बावजूद भी खुदीराम जैसा मात्र 18 साल का युवक देश के लिए किस प्रकार से कुर्बान हो गया था और आज कल के तथाकथित युवक सभी प्रकार की सुविधाएं होते हुए भी आजादी के नाम पर देश को तोड़ने के नारे लगाते देखे जाते हैं, वर्तमान में आज के युवाओ को खुदीराम जैसे वीर लोगों से देशभक्ति और देश के लिए कुछ करने के जज्बे की शिक्षा लेनी ही चाहिए।

shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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