आज हम आपको बता रहें है अपने देश के एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसको आपने शायद ही कभी पढ़ा हो और वह मानव सिर्फ पढ़ने के ही लायक नहीं है बल्कि उसके आदर्श आज भी युवाओ और सभी लोगों के लिए जीवनदाई हैं। इसका नाम था यतीन्द्रनाथ मुखर्जी, जो देश के लिए महान जज्बा और आजादी की आग को अपने अंदर में सदैव जलाए रखते थे। यतीन्द्रनाथ मुखर्जी का जन्म नादिया में हुआ था जो की वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है। छोटी उम्र में पिता की मृत्यु होने के बाद यतीन्द्रनाथ मुखर्जी का पालन-पोषण नानी के घर में हुआ था। खेलकूद और व्यायाम से इनका शरीर बलिष्ट और शक्तिशाली हो गया था इसीलिए महज 11 वर्ष की आयु होने पर उन्होंने शहर के बिगड़ैल घोड़ों को काबू करना करना सीख लिया था। यतीन्द्रनाथ मुखर्जी अंग्रजो से बहुत घृणा करते थे और जहां पर उनको देखते, उनको पीट देते। एक बार उन्होंने 8 अंग्रजो को अकेले ही पीट डाला था, अंग्रेज उनसे बहुत ज्यादा डरते थे। उनके भारत आजादी के प्लान के नाकाम होने पर भी तत्कालीन चेक गणराज्य के इतिहास को नई दिशा देने वाले इतिहासकार कहते हैं कि ‘इस प्लान में अगर इमेनुअल विक्टर वोस्का (चेक एजेंट) न घुसता, तो किसी ने भारत में गांधी का नाम तक न सुना होता और ‘राष्ट्रपिता’ बाघा जतिन को कहा जाता।”
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यतीन्द्रनाथ मुखर्जी का शादी करने का कोई इरादा नहीं था पर परिवार के दबाब में आकर उनको शादी करनी पड़ी। अपने बड़े बेटे की मौत के बाद में वे बेहद विचलित हो गए थे और मानसिक शांति हेतु वे हरिद्वार गए। वहां से वापसी में पता लगा कि एक बाघ ने उनके ही गांव में आतंक मचा रखा है, बस वे निकल पढ़ें उसको ढूंढने के लिए जंगल में और उनका सामना अचानक बंगाल में पाए जाने वाले टाइगर से हो ही गया, तब यतीन्द्रनाथ मुखर्जी ने उसको खुखरी से ही मार डाला। इस काम के लिए उन्हें बंगाल सरकार की ओर से समान्नित किया और तमाम अंग्रेजी न्यूज़ पेपर्स में उनकी खुब तारीफ हुई, इस घटना के बाद में लोगों ने उनको “बाघा जतिन” नाम से पुकारने लगे।
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ये था भारत के आजाद होने का प्लान –
उस समय जर्मन राजा भारत में आये हुए थे, तब सब लोगों से छुप कर जतिन ने जर्मन राजा से भारत को आजाद कराने के लिए हथियारों और आर्थिक सहयोग की बात कही और जर्मन राजा ने भी उनकी बात को मान लिया। इस समय तक सब कुछ भारत के हाथ में ही था पर चेक जासूस इमेनुअल विक्टर वोस्का को जैसे ही इस बात की भनक लगी, उसने यह खबर अमेरिका को दे दी और अमेरिका ने अंग्रेज हुकूमत को यह खबर पंहुचा दी। जैसे ही इंग्लैंड से यह खबर भारत के पास आई अंग्रेज सरकार ने उड़ीसा का सारा समुद्री तट सील कर दिया। इस प्रकार से भारत की आजादी का यह अवसर चला गया।
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9 सितंबर 1915 में राजमहंती नामक के व्यक्ति ने उनको पकड़ने की कोशिश की पर वह मारा गया और उस समय अंग्रेज सेना भी वहां पहुंच गई। दोनों ओर से गोली चली और काफी देर तक जतिन ने अंग्रेजों से लोहा लिया पर अंत में उनका गोलियों से छलनी शरीर जमीन पर गिर गया। जतिन हमेशा कहा करते थे “अमरा मोरबो, जगत जागबे’ यानी ‘हमारे मरने से देश जागेगा”, 10 सितंबर 1915 को जतिन ने अपनी आखरी सांस ली और हमेश के लिए विदा हो गए।