भारत में ऐसी भी जगह हैं जहां पर किसी वस्तु की तरह दूल्हें को बाजार में बिकने के लिए सजाया जाता है। यहां पर एक पारंपरिक परंपरा के आधार पर ऐसा किया जाता है। यह परंपरा सदियों से निरंतर चली आ रहीं हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह परंपरा दूल्हों की ऊंची बोली के नहीं बल्कि समाज में व्याप्त दहेज प्रथा को कम करने के लिए बनाई गई थी।
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आज के दौर में वैसे तो आम समाज में भी दूल्हों की हैसियत के हिसाब से ही उन्हें देहज दिया जाता है। वहीं कई बार तो समाज में पैसों के आधार पर ही कई रिश्ते तय किए जाते है। ऐसे में देश के बिहार राज्य के मधुबनी में हर वर्ष दूल्हों को बेचने के लिए मेला लगाया जाता है। यह मेला आज से कई सौ वर्षो पूर्व से लगाया जा रहा हैं। इस मेले में शामिल होने वाले लड़के और लड़कियों के परिवार आपस में अपने परिवार की सारी बातों को साझा करते हैं। जब दोनों पक्षों को लड़का व लड़की पंसद आ जाते है तो वह रजिस्ट्रेशन करवाकर शादी कर लेते हैं। इस दूल्हों की मण्डी में दुल्हन वाले पक्ष अपनी सामर्थ के अनुसार पैसा देकर दूल्हें को खरीद सकते है। यहां पर खरीदने की रस्म तो मात्र परंपरा भर के लिए ही की जाती है। कहा जाता है कि यह पंरपरा वर्ष 1310ई से चली आ रही हैं। इस मेले की शुरूआत देहज प्रथा को कम करने के उद्देश्य से मिथला के राजा हरि सिंह देव ने की थी। बेशक आज इस मेले में कम लोग पहुंचते हो लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को यहां पर सुयोग्य वर मिल ही जाते है।