भारतीय क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप में जहां एक ओर मिली हार से पूरा देश दुखी था वही दूसरी ओर एक नई किरणों के तरह उभरती इस आशा नें सबकी निराशा को दूर कर दिया। यहां हम बात कर रहे है भारतीय एथलेटिक्स की दूसरी उडनपरी हिमा दास की। इस तेज दौड़ धाविका नें चेक गणराज्य में आयोजित प्रतियोगिता में लगातार जीत हासिल करके दुनिया में एक नई पहचान हासिल की है। हिमा दास ने यहां महज 21 दिन के भीतर छह स्वर्ण पदक अपने नाम किये है। जानें इनके बारें में..
हिमा के ट्रैक पर दौड़कर जीत हासिल करने का अंदाज ही कुछ अलग है। वे मुख्य तौर पर 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में हिस्सा लेती हैं। रेस की शुरूआत में ये पहले धीमा दौड़ती है और, आखिरी वक्त में, जब दुनिया उनके जीतने की उम्मीद छोड़ देती है, तब हिमा अपनी रफ्तार बदलकर सबसे आगे निकलने का हुनर रखते हुए जीत हासिल कर जाती हैं।
हिमा दास के बारें में बात करें, तो उनका जीवन भी काफी गरीबी से बीता है। देश की राजधानी से दो हजार किलोमीटर से दूर असम के नागौन जिले के धींग नामक गाव में हिमा दास का जन्म 9 जनवरी 2000 को हुआ था। 6 भाई बहनों में सबसे छोटी हिमा ने भी अब तक के जीवन का लंबा सफर खेतों में बुआई और निराई करते हुये बिताया था।
दौड़ने की शुरुआत
हिमा दास का इरादा बचपन से कुछ अलग सा करने का था। उन्हें फुटबॉल खेलना काफी पसंद था इसलिये वो स्कूल में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। मैदान में उनकी फुर्ती के साथ उनके खास हुनर को देखकर टीचर ने उन्हें एथलेटिक्स में करियर बनाने की सलाह दी। हिमा ने उनकी सलाह मानकर लोकल लेवल पर एथलेटिक्स के कंपटीशन में हिस्सा लिया। और वहा उम्दा खेल दिखाया। उनके हुनर को देख कोच निपोन दास का ध्यान उसपर गया। और उसे आगे बढ़ाने के लिये गुवाहाटी में स्टेट चैंपियनशिप में हिस्सा देकर उनकी झोली में कांस्य पदक डलवाया। इसके बाद उन्हें जूनियर नेशनल चैंपियनशिप के लिए भेजा गया। लेकिन 100 मीटर की रेस के फाइनल में पंहुचने के बाद भी तक उन्हें कोई मेडल हाथ नहीं आ सका। लेकिन हार मानना उनके शब्दों में था ही नही।
भले ही यह उनके सुंदर करियर का दुखद अंत हो सकता था। लेकिन कोच ने ऐसा होने नहीं दिया। उन्होंने हिमा को ट्रेनिंग के लिए गुवाहाटी भेजने के लिये परिवार वालों को मनाकर जाने की अनुमति मांगी। बच्चे की भविष्य की चिता करते हुए घरवालों ने हां कर दी। पिता इस बात से भी खुश थे कि उनकी बेटी को तीन वक्त का भोजन तो मिल सकेगा। लेकिन उसे वहां पर जाने के लिये बी काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। उसे रोज गांव से 140 किलोमीटर दूर गुवाहाटी जाने के लिए बस पकड़नी होती थी। फिर ट्रेनिंग करके वापस आना होता था। जिसमें रात के 11 बजे जाते थे। उनकी इस परेशानी को देखते हुये कोच ने एक लोकल डॉक्टर की मदद से हिमा के रहने का इंतजाम करवाया। स्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स के ठीक बगल में हिमा के लिए राह थोड़ी आसान हो गई थी।
जब पिता ने खरीदे 1200 के जूते
हिमा की ट्रेनिंग अच्छी चल रही थी। लेकिन ट्रेनिंग के लिए अच्छे जूतों की दरकार थी। एक किसान परिवार में पैसों की अहमियत क्या होती है। स बात को हिमा काफी अच्छी तरह से जानती है। जिसके कारण उसनें कभी भी अपने पिता से जूते की मांग नही की। लेकिन पिता नें उसके मन की बात जान ली। और फिर अपनी गाढ़ी कमाई से हिमा की ट्रेनिंग के लिए 1200 के जूते खरीदे। उन जूतों को यूं सहेज कर घर लाए मानो कोई बच्चा हो। इसके बाद पिता ने वो जूते हिमा को ऐसे सौंपे,जैसे कोई अपनी विरासत सौंप रहा हो। जूता था ADIDAS फुटवियर बनाने वाली जर्मन कंपनी का जिसने बाद में सितंबर 2018 में उसने हिमा दास को अपना एम्बेसडर भी बनाया। आज हिमा का नाम ADIDAS के जूतों पर छपता है। आज हिमा खुद एक ब्रांड हैं, जिसकी रफ्तार के साथ दुनिया दौड़ रही है।
गेम के लिए परीक्षा छोड़ दी
साल 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में होने वाले थे जिसकी डेट 4 से 15 अप्रैल के बीच रखा गई था लेकिन हिमा के लिये यह टूर्नामेंट बड़ी ही दुविधा वाला था। क्योकि उसी दौरान उनकी बोर्ड परीक्षाएं होने वाली थी लेकिन घरवालों ने उसकी इस दुवाधी का हल खोज कर कहा कि खेलने का ऐसा मौका 4 साल के बाद ही मिलेगा, लोकिन बोर्ड परीक्षा तुम अगले साल भी दे सकती हो। हिमा की सारी उलझन दूर हुई। कॉमनवेल्थ में हिस्सा लेकर 400 मीटर की रेस दौड़ में वो छठे स्थान पर रहीं। 4*400 रिले रेस में उनकी टीम सातवें स्थान पर रही। जब 2019 में उन्होंने 12वीं की परीक्षा दी। तो हिमा ने फर्स्ट डिविजन से बारहवीं की परीक्षा पास की है।
बहुत कठिन है डगर पनघट की
2019 का जुलाई का महीना जब हिमा को एक नई किरण का इतंजार था। वो इतजार खत्म भी हुआ जब 20 दिनों के अंतराल में 5 गोल्ड मेडल हासिल कर देश को गौरान्वित कर दिखाया। लेकिन उनकी उम्मीदों का अंत यही नहीं था। वो अपने खेल से अभी उतनी खुश नही है क्योकि, 5 गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद भी उन्हें सितंबर में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप का टिकट नहीं मिला है। 400 मीटर की स्पर्धा में 51.80 सेकंड क्वालीफाइंग मार्क था। हिमा 52.09 पर अटक गईं। 200 मीटर की केटेगरी में क्वालीफाय करने के लिए 23.02 सेकंड में रेस पूरी करनी थी। हिमा ने 4 गोल्ड जरूर जीते, लेकिन किसी में भी इस पॉइंट तक पहुंचने में नाकाम रहीं। जिन प्रतियोगिताओं में हिमा ने सोने का तमगा हासिल किया है, वे E और F केटेगरी में आते हैं। इन्हें इंटरनेशनल लेवल पर सबसे निचले स्तर पर रखा जाता है।
अब देखना यह है कि 2018 के एशियन गेम्स में वे 50.79 सेकंड में 400 मीटर की रेस पूरी करने का कारनामा दिखा चुकी हैं। उनका अगला लक्ष्य 50 सेकंड के अंदर 400 मीटर की रेस पूरी करना है। जिसके लिये वो पूरे लगन के साथ मेहनत कर रही है। उनकी इस बढ़ते हौसले को देख पूरी देश उन्हें बधाइयां दे रहा है और आगे बढ़ते रहने की प्रार्थना करता है।
अभी हाल ही साल 2018 में बनी चर्चित हॉलीवुड फिल्म को ऑस्कर अवॉर्ड मिलाथा इस फिल्म की शुरुआत में अंधेरी स्क्रीन पर कुछ लाइनें प्रकट होती हैं। जिसे हम इस उड़नपरी को समर्पित करते है।
“शांत इंसान से सतर्क रहिए; जब तक कि दूसरे लोग शोर मचाते हैं, वह देखता है। जब दूसरे लोग काम करते हैं, वह योजना बनाता है। और, जब दूसरे लोग पूरी तरह निश्चिन्त होकर आराम करते हैं, वह अपनी चाल चल देता है।
हिमा के खेलने का तरीका भी कुछ ऐसा ही है। असम की हिमा दास अब देश की हिमा दास हो गई हैं। उन्होंने शुरुआत कर दी है सी दिन चौंकने के लिए खुद को तैयार कर लीजिए”।