समय बदला, लोग बदले, पर नहीं बदली इंसानों की स्त्रियों प्रति गलत नीयत की धारणा, जो सदियों से लेकर आज तक चली आ रही है। इसमें चाहे सामान्य इंसान हो या फिर देवता या दानव सभी लोग इससे दूर नहीं रहें हैं। यह परिपाटी आज की नहीं बल्कि पुरानी परिपाटी की देन है जिसमें हर सुंदर स्त्री के प्रति उस समय के लोग भी गलत नीयत रखकर उसके साथ दुराचार करने में पीछे नहीं हटते थें और इसी दुराचारी अंश का सबसे बड़ा रामायण का एक पात्र रावण था। जिसे लोग आज भी बुराई की दृष्टि से ही देखते हैं। आज हम रावण के उस सत्य के बारे में बता रहें हैं जिसके बारे में आप नहीं जानते होंगे। माता सीता का हरण करने के बाद भी रावण नें उन्हें अपने से दूर अशोक वाटिका में ही क्यों रखा, उनके नजदीक तक क्यों नहीं पहुंच सका। आज हम इस रहस्य को उजागर करने जा रहें हैं।
अर्ध दानव और अर्ध ब्राह्मण के रूप में पैदा हुआ रावण भगवान शिव का सच्चा उपासक था। इसके अलावा चारों कलाओं में परम ज्ञानी, परम प्रतापी और काफी बुद्धिमानी था। ऐसा माना जाता है कि रामायण की घटनाओं और अपने अंत के बारे में वह सब कुछ पहले से ही जानता था। लेकिन इन सबके बाद भी उसने माता सीता का हरण कर, सबसे बड़ी गलती आखिर क्यों की। इसके बाद भी वो माता सीता से इतने दूर क्यों रहा? अगर यह बात करें कि वह सीता की सतीत्व शक्ति से डरा हुआ था या राम की शक्ति का भय था। तो वह इन सब बातों से दूर वह एक भयंकर दिए गए श्राप से जकड़ा हुआ था।
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दरअसल, माता सीता को ना छूने की सबसे बड़ी वजह एक श्राप था, जो उसे बार-बार मां सीता के साथ जबरदस्ती करने से रोकता था। रावण के इस श्राप की सबसे बड़ी वजह बनी थी स्वर्ग लोक की अप्सरा रानी रंभा। ये कहानी है उस वक्त की जब अंहकारी रावण सभी जगह को जीतते हुए स्वर्ग लोक को पाने की लालसा से आगे बढ़ रहा था। स्वर्गलोक की ओर जाते समय जब वो कुबेर के शहर अलाका पहुंचा तो वहां कुछ देर आराम करने लगा। वहां का वातावरण इतना मनमोहक था कि उसके मन में वासना की इच्छा जाग्रत होने लगी। तभी उस रास्ते से स्वर्ग के अप्सरा रंभा आती हुई नजर आई जो कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रावण रंभा के रूप और सौंदर्य को देखकर इतना मोहित हो गया कि उसने जाती हुई अप्सरा का मार्ग रोकर उसके साथ गलत नीयत की धारणा बना ली।
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रूपवती रंभा ने रावण को लाख समझाने की कोशिश की पर वो अपने बल का प्रयोग कर उससे जबर्दस्ती करने लगा। रभां ने रावण से विनती करते हुए कहां कि मैं आपके भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रहीं हूं और मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। इसलिये आप इस तरह की गलती ना करें। पर रावण वासना के नशे में ऐसा चूर था कि उसे अपने सभी रिश्ते को तार तार कर दिया था।
रावण के द्वारा किए गए इस कृत्य की खबर जब कुबेर देव के पुत्र नलकुबेर को लगी तो वो भारी क्रोध से वाशीभूत होकर रावण से बदला लेने जा पहुंचे। अपनी प्रिय के साथ हुए इस दुराचार का बदला लेने और क्रोध के कारण नलकुबेर ने रावण को श्राप दे दिया कि आज के बाद तू जिस स्त्री को बिना उसकी स्वीकृति के अपने महल में रखेगा या उसके साथ दुराचार करने की कोशिश करेगा, तेरा उसी समय अंत हो जाएगा। इसके साथ ही तेरी मौत का कारण भी एक स्त्री ही बनेगी। इसी श्राप के डर से रावण ने सीता को ना तो छूने की कोशिश की और ना ही उन्हें अपने महल में रखा, बल्कि उन्हें अपने महल से दूर अशोक वाटिका में रखा।