भगवान शिव के मस्तक पर आपने सदैव चंद्रमा को देखा होगा, पर क्या आप जानते हैं कि आखिर भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर स्थान क्यों दिया, यदि नहीं तो आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं। आपको बता दें कि भगवान शंकर का एक नाम “शशिधर” भी हैं। असल में यह नाम उनका उस समय पड़ा जब उन्होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर स्थान दिया, लेकिन सवाल यह हैं कि आखिर भगवान शंकर ने ऐसा क्यों किया। इस संदर्भ में एक कथा सामने आती हैं। आइये जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में।
यह हैं चंद्रमा को मस्तक पर धारण करने का असल कारण –
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पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव का विवाह प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं के साथ संपन्न हुआ था। इन सभी में से चंद्रदेव सबसे अधिक प्रेम रोहिणी को करते थे। इस बात से नाराज होकर अन्य लड़कियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से चंद्रदेव की शिकायत कर दी। इस बात से दक्ष बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने चंद्रदेव को क्षय होने का श्राप दे दिया।
इस श्राप के प्रभाव से चंद्रदेव दिन प्रतिदिन क्षय रोग से पीड़ित होते चले गए और उनकी सभी कलाएं भी क्षीण होती चली गई। इस श्राप के प्रभाव को ख़त्म करने के लिए चंद्रदेव ने भगवान शिव की उपासना की। चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उनको न सिर्फ जीवनदान दिया बल्कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर चंद्रमा को अपने मस्तक पर स्थान भी दिया।
मान्यता हैं कि जब चंद्रदेव अपनी अंतिम सांसे ले रहें थे तो उसी समय भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में उनको दर्शन देकर उनको नया जीवन दिया। इसी दौरान उन्होंने चंद्रदेव को अपने मस्तक पर भी धारण किया था।
तभी से भगवान शंकर का एक नाम “शशिधर” भी पड़ गया। जिस स्थान पर चंद्रदेव ने शिव जी के लिए तप किया था वह स्थान आज “सोमनाथ” कहलाता हैं जो की भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। माना जाता हैं कि दक्ष के उस श्राप के कारण आज भी चंद्रमा का आकर बढ़ता और घटता रहता हैं।