वैसे तो उम्रकैद का मतलब ताउम्र की कैद ही होता है, पर अक्सर अपने देखा होगा कि उम्रकैद का कैदी महज 14 वर्ष में बाहर आ जाता है। इसी कारण बहुत से लोगों के मन में यह विचार आता है कि जब उम्रकैद हुई है, तो अपराधी को ताउम्र जेल में ही रहना चाहिए, ऐसे में वह महज 14 वर्ष में ही जेल से बाहर कैसे आ जाता है। आज हम आपको इस बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता बताते हैं कि असल में संविधान में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि उम्रकैद का मतलब 14 वर्ष होता है। होता यह है कि जब अपराधी का गुनाह साबित हो जाता है, तो कोर्ट सिर्फ यह तय करता है कि आरोपी को उम्रकैद होगी या अन्य कोई सजा। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि उम्रकैद का मतलब सिर्फ जीवन भर की कैद ही होता है।
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इस प्रकार से देखा जाए तो कोर्ट का कार्य सिर्फ आरोप सिद्ध होने पर अपराधी को सजा सुनना ही है, पर इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि कोर्ट द्वारा सुनाई सजा को एक्जिक्यूट करना यानि लागू करने का कार्य राज्य सरकार का होता है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह कार्य राज्य सरकार के हाथों में होता है कि वह अपराधी को 14 वर्ष जेल में रखें या 20 वर्ष या फिर ताउम्र। आपको हम बता दें कि भारतीय संविधान के एक्ट सीआरपीसी की धारा-433 ए के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपराधी की सजा को कम कर सकती है या उसको निलंबित भी कर सकती है। सबसे बड़ी बात यह है की संविधान में यह तय किया है कि जिस कैदी को उम्रकैद की सजा मिली है वह 14 वर्ष से कम न हो, यानि सजा 15 वर्ष या उससे ज्यादा हो सकती है पर 14 वर्ष से कम नहीं होगी। 14 वर्ष के बाद में सरकार अपराधी के बीमारी के मुद्दे या उसके चाल चलन को देखकर उसको जेल से मुक्त कर सकती है। इस प्रकार से देखा जाए तो संविधान में सामान्य कैद की समय सीमा तय नहीं की हुई है, बल्कि वह राज्य सरकार के हाथ में होता है, लेकिन उम्रकैद के अपराधी को कम से कम 14 वर्ष की कैद का प्रावधान दिया गया है।