जहां एक ओर शरीर में खून की कमी हो जाने से जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है, वहीं दूसरी ओर शरीर में बिना खून के किसी का जिंदा रहना काफी आश्चर्यजनक बात लगती है, पर यह बात सत्य है कि खून के बिना भी कुछ लोगों की जिंदगी समान्य रूप से चल रही है। यहां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की, जहां का हर दूसरा इंसान एनीमिया और कुपोषण का शिकार है।
बांसवाड़ा जिले में रहने वाले पुरुष, महिलाएं और उनके बच्चों के शरीर में एक से दो ग्राम तक ही हीमेाग्लोबीन पाया जाता है। इसके बावजूद भी उनके दिल धक-धक करते धड़क रहे हैं।
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मेडिकल साइंस के अनुसार हर महिला पुरुष में 13.5 से 14.5 ग्राम तक हिमोग्लोबीन की मात्रा पायी जाती है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में 15.5 ग्राम तक हिमोग्लोबीन होना जरूरी होता है, लेकिन यहां कि महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान भी 4 से 5 ग्राम खून नहीं पाया जाता है। डॉक्टर के पास आ रहे यहां के लोगों के शरीर में खून चढ़ाकर ही उनकी पूरी जांच की जाती है, क्योंकि शरीर में खून ना होने के कारण इनकी जांच करना असंभव हो जाता है। शरीर में खून ना होने के बावजूद यहां के लोग अपने रोजाना के कामों में मशगूल होकर दिन रात मेहनत करने में लगे रहते हैं। इन्हें अपने शरीर में होने वाली खून की कमी का पता तभी चल पाता है जब ये अपनी किसी बीमारी के समय इलाज के लिए जाते हैं। तब शरीर में होने वाली खून की मात्रा की कमी का पता चलता है।
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बताया जाता है कि यहां रहने वाले लोगों के शरीर में ज्यादा से ज्यादा 4.2 ग्राम तक ही हिमोग्लोबीन पाया जाता है, इसके ऊपर नहीं। इनकी इस अवस्था को देख डाक्टर भी हैरान और परेशान हैं कि इतनी कमी में जब सामान्यत: लोगों का बिस्तर से उठना दूभर हो जाता है ऐसे में इन लोगों के शरीर में ऐसी कौन सी शक्ति है कि ये लोग इस कमी के बाद भी केवल चलते फिरते ही नहीं बल्कि मजबूत से मजबूत काम करने के लिये तैयार खड़े रहते हैं। दिन रात मेहनत कर अपना पेट पाल रहे हैं। यह इनकी मजबूरी के साथ-साथ सरकार की बेरुखी को भी साफ दर्शा रहा है।