आपने “दमादम मस्त कलंदर” नामक गीत तो सुना ही होगा, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि यह गीत “कलंदर शाह” के ऊपर बना काफी पुराना गीत है। आज के समय में इस गीत को नए तरीके और नए संगीत के साथ बनाया गया है। आज हम आपको कलंदर शाह तथा उनकी दरगाह के बारे में ही बता रहें हैं, जो भारत में हिंदू मुस्लिम भाईचारे की प्रतीक बनी हुई है। आपको हम यह बता दें कि हजरत निजामुद्दीन तथा अजमेर शरीफ दरगाह की तरह ही कलंदर शाह की दरगाह भी काफी सम्मानित हैं। आइए सबसे पहले हम आपको बताते हैं हजरत शाह कलंदर के बारे में।
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हम आपको बता दें कि हजरत शाह कलंदर का असल नाम “शेख शर्राफुद्दीन” था तथा इनके पिता का नाम “शेख फख़रुद्दीन” था जो कि अपने समय में बड़े संत थे। कलंदर शाह का जन्म 1190 ई में हुआ तथा 1312 ई उनका निधन हो गया था, इस प्रकार देखा जाए तो कलंदर शाह 122 वर्ष तक जीवित रहे। शेख कलंदर शाह का शुरूआती जीवन दिल्ली में कुतुबमीनार के पास ही गुजरा था, बाद में वे पानीपत में निवास करने लगे थे। कलंदर शाह ने “दीवान ए हजरत शरफुद्दीन बु अली शाह कलंदर” नामक के काव्य ग्रंथ फारसी भाषा में भी लिखा था। कलंदर शाह के गुजरने के बाद में अलाउद्दीन खिलजी के बेटों, खिजिर खान और शादी खान ने उनका मकबरा बनवाया था।
यह मकबरा पानीपत में कलंदर शाह चौंक पर स्थित है। कलंदर शाह की इस दरगाह पर हर बृहस्पतिवार लोगों की काफी भीड़ रहती है। सभी धर्म तथा वर्गों के लोगों को आप यहां देख सकते हैं। इस दरगाह पर सभी लोग सामान भाव से आकर प्रार्थना करते हैं तथा अपनी-अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए मन्नत भी मांगते हैं, जो लोग इस दरगाह पर मन्नत मांगते हैं वे इस दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं। कई अकीदतमंद लोग यहां पर ताले के साथ मन्नती पत्र भी लटका जाते हैं।