गोवर्धन पूजा से जुड़ी कहानियां और महत्व

-

गोवर्धन पूजा का पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस पर्व में हिन्दू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते हैं। बृज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

इस पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था जिसे तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। कहा जाता है कि एक दिन उन्होंने देखा कि सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और पूजा की तैयारी कर रहे हैं। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया कि मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं। कृष्ण की बातें सुनकर मईया बोलीं, लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।

GovardhanImage Source: https://upload.wikimedia.org

मईया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले, मईया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है। उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें वही चरती हैं। इस दृष्टि से तो गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है। इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं। अतः ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।

कृष्ण की बात सुन कर सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की। जिसे देवराज इन्द्र ने अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया। सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए। उन्होंने वर्षा और तेज कर दी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के शिखर पर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

Govardhan2Image Source: http://www.vrindavan-dham.com/

इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे पर अन्त में उन्हें एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं है। यह तो स्वयं विष्णु के अवतार श्री कृष्ण हैं। फिर वे लज्जित हो कर श्री कृष्ण के पास गए और उन्होंने श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी, इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इसी घटना के बाद से ही गोवर्धन की पूजा शुरु कर दी गई और यह पूजा सालों से यूं ही चली आ रही है।

Upasana Bhatt
Upasana Bhatthttp://wahgazab.com
एक लेखिका होने के नाते दुनिया को देखने का मेरा अपना अलग नजरीया है। मैं अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर लिखना पसन्द करती हुँ ताकि सबके आगे सही तरीके से सच रख सकुं।

Share this article

Recent posts

Popular categories

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent comments