देखा जाए तो सभी धर्मों के उपासनागृहों को “ऊपर वाले” का घर कहा जाता है इसी प्रकार से हिन्दू धर्म में भी मंदिर को ईश्वर का गृहस्थान माना जाता है और इसी के अंदर लगी मूर्ति को भक्त अपनी श्रद्धा से अपने मन में जीवंत कर लेता है। मंदिर को सामूहिक उपासना का केंद्र भी कहा जा सकता है और इसी प्रकार से अन्य धर्मों के सभी उपासनागृहों को भी, देखा जाए तो इस प्रकार के उपासनागृहों का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। जिनमें भगवान और भक्त के मध्य परस्पर प्रेम और श्रद्धा का वार्तालाप चलता है। जहां तक बात भारत भूमि की है तो आप जानते ही है कि यह प्राचीनकाल से ही आध्यात्मिक भूमि रही है और पूर्व काल से अब तक इस भूमि पर अनेक ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने इस देश को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को आंदोलित किया है, यही कारण है कि वर्तमान में भी आप स्थान-स्थान पर मंदिर या उपासनागृहों को देख सकते हैं पर आज हम आपको इन उपासनागृहों अथवा मंदिरो में से एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहें हैं जहां पर आप साक्षात् भगवान के दर्शन कर सकते हैं आइये जानते हैं इस विशेष मंदिर के बारे में।
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इस मंदिर का नाम है “कोणार्क मंदिर”,यह सूर्य मंदिर के नाम से भी विश्वविख्यात है। यह मंदिर अपने देश के ही पूर्वी राज्य उड़ीसा में स्थित है और यह यहां के पुरी जिले से 21 किमी उत्तर-पूर्व की और चंद्रभागा नदी के मनोरम किनारे पर स्थित है। यह भारत के सबसे खूबसूरत मंदिरो में गिना जाता है, इस मंदिर का बाह्य आवरण और नक्काशी इतनी उत्कृष्ट है कि यह किसी भी विद्वान वस्तुशिल्पी को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर देती है। यह दुनिया के सबसे अनूठे मंदिरो में से एक है और इस बात का पता इससे ही लगता है कि यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व धरोहर के रूप में संजोया हुआ है।
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इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि इसके गृभगृह में स्थित भगवान को आप साक्षात् देख सकते हैं और मन्नत भी मांग सकते हैं। इस मंदिर को 1236-1265 ईसा पूर्व राजा नरसिंह देव ने बनवाया था। इस मंदिर को बनाते समय की इसकी कल्पना उत्कृष्ट तरीके से की गई है। असल में इस मंदिर को सूर्य के रथ के रूप में बनाया गया है, इस मंदिर में 12 जोड़े पहिये लगे हैं और इसको 7 शक्तिशाली घोड़ो द्वारा खिंचता हुआ दिखाया गया है।
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इस मंदिर में सूर्य की तीन मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जो की बाल्यावस्था, युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था की प्रतीक हैं। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के पुत्र “साम्ब” को शाप के फलस्वरूप कोढ़ हो गया था तो उसने इस स्थान पर आकर 12 साल तप किया और सूर्य भगवान को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप उसका कोढ़ सही हो गया था तब उसने यही पर सूर्य का एक मंदिर बनाने का निश्चय किया था।