आपने मंदिरों में पूजा अर्चना के साथ लगने वाली झांकियों के बारे में तो सुना ही होगा पर क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर झांकियों में दूर देश के लोग बनते है लंगूर। ऐसा करने से कबूल होती है हर दिल की इच्छा।
ये अद्भुत मंदिर है पंजाब के अमृतसर में, यहां पर हम स्वर्ण मंदिर की नहीं बल्कि हनुमान मंदिर की कर रहे है। जो अपने आप में अनेक चमत्कार करते हुए उभर रहा है। अपनी हर इच्छा को पूरा करने के लिए यहाँ पर हर साल वानरों का मेला लगता है, जिसमें दूर देश-विदेश के बच्चे आकर लंगूर बनते है।
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बताया जाता है कि इस प्राचीन मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में स्थापित है। जिसे देखकर लगता है कि स्वयं हनुमान जी विश्राम की मुद्रा में विराजमान हैं।
यह मंदिर को लोग रामायण काल से जोड़ते हुए बताते है कि किसी समय इस जन्मभूमि में भगवान श्री राम एवं उनकी सेना के साथ लव-कुश के बीच एक युद्ध हुआ था। जिसमें श्री हनुमान जी लव-कुश से अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मांगने के लिए आगे बढ़े थे। तो लव कुश के द्वारा उन्हें इसी वट वृक्ष पर बांधा गया था जो आज भी उसी स्थान पर मौजूद है।
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उन्हीं की याद में यहां कार्तिक महीने की शुरूआत में 10 दिनों का मेला लगता है। जिसमें दूर देशों के लोग बड़ी ही तदाद में अपनी मन्नत मांगने के लिए यहां आते है। जिसके बाद छोटे-छोटे लड़के विशेष प्रकार से लाल रंग का जरी वाला चोला पहनकर, हाथ में छड़ी लिए हुए इस मंदिर में आते है।
लंगूर बनने वाले लोगों को कई नियम से होकर गुजरना पड़ता है। जिसमें उनकों पूजा करने के दौरान नारियल, मिठाई, 2 फूलों का हार चढ़ाने के साथ पुष्प हार वहां के पुजारी जी का आशीर्वाद लेकर वानर की वर्दी धारण करनी होती है। इसके बाद ढोल नगाड़ों की ताल पर थिरकते हुए रोज दो समय माथा टेकने के लिए मंदिर आना काफी जरूरी होता है। इसके साथ इन लोगों को जमीन पर ही सोना होता है, और उन 10 दिनों तक जूते-चप्पल ना पहनने के साथ चाकू से कटी कोई भी चीज नहीं खा सकते।
इसके अलावा लंगूर का वेषधारण करने वाला सूई धागे और कैंची का काम नहीं कर सकता। उसे रोज 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करना पड़ता है और लंगूर को मंदिर में वही व्यक्ति ला सकता है। जिसका बच्चे के साथ खून का रिश्ता होता है। लंगूर बनने वाले बच्चे के परिवार के लोग खेत जोत नहीं सकते और ना ही कोई कंचके खिला सकते है।