समाज में महिलाओं को घर की जिम्मेदारियां तो दी जाती हैं, पर उन्हें घर के मुखिया होने के दर्जे से वंचित किया जाता रहा है। आज समाज में महिलाएं हर काम में पुरुषों के बराबर क्षमता और कुशलता को प्रदर्शित कर रही हैं। इसके बाद भी उनको कई अधिकार प्राप्त नहीं हो पाते हैं। इन सभी के बीच महिलाओं की स्थिति को और अधिक कानूनी दायरे में लाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से एक बड़ा और अहम फैसला सुनाया गया है। इस फैसले के मुताबिक घर में जो भी संतान सबसे बड़ी होगी उसे ही घर का मुखिया कहा जाएगा, चाहे वह बेटी ही हो।
समाज में महिलाओं की स्थिति को और सुदृढ़ करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस नाजमी वजीरी ने एक अहम फैसला सुनाया है। दिल्ली के हाईकोर्ट में एक कारोबारी परिवार की बेटी ने अपने चचेरे भाई के मुखिया होने के दावे के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। उनके परिवार में पिता और चाचाओं की मृत्यु हो गई थी। इस कारण उस युवती ने कहा की वह घर की बड़ी बेटी है, लिहाजा उसे ही मुखिया होना चाहिए। इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट में जस्टिस नाजमी ने फैसला सुनाया कि अगर परिवार में पहले जन्म लेने वाला पुरुष घर के मुखिया के सभी कामकाजों को संभालने का अधिकारी हो सकता है, तो उसी प्रकार महिलाएं भी हो सकती हैं। हिंदुओं में संयुक्त रूप से रहने वाले परिवारों में महिलाओं को ऐसा करने से रोकने के लिए कोई भी कानून नहीं है।
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आपको बता दें कि हिंदू सक्सेशन एक्ट में वर्ष 2005 में संशोधन करके धारा छह को शामिल किया गया था। इस धारा में महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार दिया गया था। अब हाईकोर्ट के इस फैसले से बेटी पैतृक प्रॉपर्टी और अन्य संपत्ति के साथ ही परिवार के अन्य मुद्दों पर भी कानूनी रूप से अधिकारी होगी। समाज में पूर्व से ही देखा गया है कि घर में पुरुष के छोटा होने पर भी उसे ही मुखिया कहा जाता है। ऐसे में अब हाईकोर्ट का यह फैसला समाज में नया संदेश देने वाला है। इतना ही नहीं इस फैसले से समाज में लड़कियों के प्रति नजरिए में भी बदलाव आ सकेगा।