मां नेतुला मंदिर – यहां आंखों के रोगों के साथ ही संतान पाने की कामना भी होती है पूरी

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भारत सहित विश्व में बहुत से मंदिर हैं, पर क्या आपने कोई ऐसा मंदिर देखा है जहां दर्शन-पूजन करने से आंख के रोग तथा संतान पानें की मनोकामना पूरी होती है यदि नहीं, तो आज हम आपको बता रहें हैं एक ऐसे ही मंदिर के बारे में, आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

यह मंदिर मां नेतुला देवी का मंदिर है जो की सिकंदर प्रखंड के कुमार नामक गांव में स्थित है, यह मंदिर काफी प्राचीन मंदिर है और लाखों लोगों की आस्था का केंद्र रहा है। इस मंदिर में वैसे तो नित्य ही मां नेतुला की उपासना के लिए लोग आते हैं, परंतु प्रत्येक मंगलवार को इस मंदिर में देवी नेतुला की विशेष पूजा की जाती है इसलिए मंगलवार को यहां काफी लोग आते हैं। नवरात्र के दिनों में देवी नेतुला का यह मंदिर भक्तों और श्रद्धालुओं से भरा होता है। हमारे देश में अनेक मंदिर शक्तिपीठ माने गए हैं और उन्हीं शक्तिपीठों में से यह एक शक्तिपीठ देवी मां नेतुला का मंदिर भी माना जाता है, मान्यता है कि यहां पर देवी सती की पीठ का भाग गिरा था। देवी नेतुला के इस मंदिर के बारे में वैसे तो कोई पुरातन इतिहास नहीं मिलता है, परंतु जैन घर्मग्रंथों और कुछ किदवंतियों में इसके साक्ष्य जरूर मिलते हैं।

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नेत्ररोग और संतान की कामना होती है पूरी –
वैसे तो नित्य ही देवी नेतुला के इस मंदिर में सभी रोज पूजा-अर्चना करते हैं पर नवरात्र के दिनों में विशेष रूप से इस मंदिर में लोग दूर-दूर से मां के दर्शन और पूजन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर के बारे में लोगों की मान्यता है कि यहां पर पूजा-अर्चना करने से नेत्ररोग से परेशान लोगों की सभी प्रकार की बीमारियां सही हो जाती हैं। साथ ही लोगों का विश्वास है कि यहां पर संतान पाने की इच्छा से आए सभी लोगों की कामना भी पूरी हो जाती है। नवरात्र में यहां पर बहुत से भक्त सिर्फ फलाहार करते हुए पूरे नौ दिन तक व्रत रहकर मंदिर में सेवा कार्य करते हैं। यह एक प्राचीन मंदिर है और इसलिए ही लंबे समय के बाद में इसकी हालात बहुत जीर्ण शीर्ण हो गई थी, इसलिए तत्कालीन गिद्धौर के चंदेल वंशीय राजा रावणेश्वर सिंह ने इस मंदिर को दोबारा से बनवाकर इसको नया जीवन दिया था, इसके बाद में सन 2000 में शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस मंदिर को नवनिर्मित कराने के लिए आयोजन शुरू किया था और वर्तमान में इस नए मंदिर के लिए कार्य प्रगति पर है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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