कुछ मान्यताएं इस प्रकार की होती हैं जिनके बारे में यदि विवेकपूर्वक विचार किया जाता है तो यह समझ नहीं आ पाता कि ये प्रथाएं आखिर कहां तक सार्थक हैं। आज भी हमारे समाज में कई इस प्रकार की प्रथाएं और मान्यताएं विधमान हैं जिनको विवेक और मानवीयता की परिधि से दूर ही कहा जा सकता है। आज हम आपको एक ऐसी ही एक प्रथा के बारे में बताने जा रहें हैं, आइये जानते हैं इस प्रथा के बारे में।
Image Source:
इस प्रथा को मुख्य तौर पर बलि प्रथा कहते हैं यह प्रथा अलग-अलग पंथों और संप्रदायों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है और जो घटना आज हम आपको बताने जा रहें हैं वह इस बलि प्रथा से ही जुड़ी है, हालही में गुजरे विजयदशमी के पर्व पर इस प्रथा के तहत झांसी में 1100 बकरों की बलि दी गई, यह बलि लोगों ने देवी के सामने दी। इस बारे में यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह एक पुरातन प्रथा है और अनेक वर्षों से ऐसे ही चल रही है। यह प्रथा झांसी के खटकयाने इलाके में पुराने समय से चल रही है असल में इस इलाके में देवी का एक मंदिर हैं जिस पर यहां के लोग प्रतिवर्ष बलि भेंट करने की इस प्रथा हेतु कई सौ बकरों की बलि चढ़ा देते हैं।
Image Source:
इस वर्ष भी 1100 बकरों की बलि चढ़ाई गई, बलि चढ़ाने से पहले इन सभी बकरों को शराब से ही नहलाया गया और फिर इसके बाद में एक-एक करके सभी की बलि दी गई। यहां के लोगों का कहना है कि इस प्रकार बलि की प्रथा से देवी खुश होती है और मनोकामना को पूरा करती है और उस समय तक देवी की प्रतिमा का विसर्जन नहीं किया जाता है जब तक की यह बलि की प्रथा पूरी न हो जाए, खैर जो भी हो अपनी-अपनी मान्यताएं हैं पर यदि किसी भी कार्य को करने से पहले विवेकपूर्वक विचार कर लिया जाए तो कहीं ज्यादा उत्तम रहता है, वैसे भी मनुष्य को धरती का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है और वो इसलिए क्योंकि उसके पास में सही-गलत और अच्छा-बुरा सोचने की और उनका विभेद करने की क्षमता है, बाकी तो यह सच है ही कि जो जैसा करता है वो वैसा ही भरता भी है।