देश के कई हिस्सों में सूखे की वजह से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। यहां के जमीनी हालतों के आगे सरकार के दावे और वादे पूरी तरह खोखले ही नजर आ रहे। यह बात निश्चित रूप से हैरान कर देने वाली है कि भोपाल के टीकमगढ़ जिले में मोहनपुरा गांव में सूखे और कर्ज से बुरी तरह परेशान हो चुकी एक मां को अपनी बेटी को एक लाख रुपए में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। वहीं, बुंदेलखंड के लोग तीन साल से सूखा झेल रहे हैं। सूखे से निजात पाने के लिए टीकमगढ़ जिले के पांच गांव के लोग श्रमदान कर डैम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। डैम के लिए बच्चे तक भारी पत्थर अपने सिर पर ढो रहे हैं।
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जानकारी के अनुसार भोपाल के टीकमगढ़ जिले में मोहनपुरा गांव में एक मां पर आरोप है कि अपनी बेटी को 1 लाख में बेचने का मामला सामने आया है। बच्ची के मामा गणेश का आरोप है उसकी बहन काशी देवी ने सूखे और कर्ज के चलते अपनी बेटी भगवती को बेच दिया है, जबकि काशी देवी का कहना है कि उसने अपनी बेटी की सागर जिले में शादी कर दी है और वो अपने ससुराल में है। वहीं मामा का कहना है कि लड़की अभी नाबालिग है।
वहीं, लड़की को बेचने की बात उजागर होते ही स्थानीय प्रशासन सक्रिय हो गया और मामले की जांच शुरू कर दी। देहात थाना प्रभारी मधुरेश पचौरी का कहना है कि जांच में यह पता चला है कि लड़की नाबालिग है। पुलिस कर्मियों को लड़की को लेने के लिए सागर भेजा गया है। लड़की से पूछताछ के बाद ही यह पता चल सकेगा कि उसे बेचा गया है या उसकी शादी हुई है।
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वहीं दूसरी तरफ बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में लोगों को काफी परेशानी और बदहाली का सामना करना पड़ रहा है। सूखे से बचने के लिए यहां के लोग खुद अपना बचाव कर रहे हैं। यहां के पांच गांव मिलकर डैम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। डैम करीबन 150 फीट लंबा और 15 फीट चौड़ा बनाने की कोशिश है। इस काम में पुरुष और महिलाएं तो एड़ी-चोटी का जोर लगा ही रहे हैं, साथ ही साथ बच्चे भी कड़ी मशक्कत कर रहे हैं।
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बता दें कि डैम बनाने का काम सामाजिक संस्था एकता परिषद की पहल पर शुरू किया गया है। ये स्टॉप डैम लगभग आधा बन चुका है, गांव के लोग सुबह 7 बजे से लेकर 11 बजे तक जुटे रहते है। उन्हें चना, गुड़ और मुरमुरा खाकर काम चलाना पड़ रहा है।
इस डैम को बनाने में नहीं लगा एक भी पैसा
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आपको जानकर हैरानी होगी कि इस डैम को बनाने के लिए 1 भी रुपया खर्च नहीं किया जा रहा है। प्रशासन का कहना है कि इस डैम को बनाने में 10 लाख रुपये की लागत आती जिसे गांव वाले बिना कुछ भी खर्च किए बना रहे हैं। इस श्रमदान में कई गांव के लोग हिस्सा ले रहे हैं। साथ ही डैम के लिए बच्चे तक भारी पत्थर अपने सिर पर ढो रहे हैं।