वैसे तो अपने यहां बहुत से मंदिर हैं, पर इनमें से कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जो हिंदू-मुस्लिम लोगों के बीच प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी दे रहें हैं, जो न सिर्फ अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि हिन्दू-मुस्लिम लोगों के बीच भी वर्षों से भाईचारे का प्रतीक बना हुआ है। आपको हम बता दें कि इस मंदिर का नाम “ओखाबावजी मंदिर” है। इतिहासिक दृष्टि से यह मंदिर करीब 600 वर्ष पुराना है। यह मंदिर मध्य प्रदेश के मंदसौर में चंद्रपुरा नामक स्थान पर है। मान्यता है कि इस मंदिर की बावड़ी का चमत्कारी जल और भभूत टाइफाइड तथा मोतीझारा के मरीज को स्वस्थ कर देती है।
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इस संबंध 1698 के जून माह की एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र मिलता है। यह घटना है तत्कालीन बादशाह आलमगीर की। असल में बादशाह आलमगीर को उस समय मोतीझारा के रोग से पीड़ित थे। उसी समय उनको किसी ने ओखाबावजी मंदिर के बारे में बताया। इसके बाद में बादशाह आलमगीर ने इस मंदिर पर 27 दिन तक विश्राम किया तथा यहां की बावड़ी का जलपान किया और वे स्वस्थ हो गए। इस घटना से बादशाह बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने फारसी भाषा में एक लेख लिख कर तत्कालीन पुजारी बाबा हलकनपुरी को दिया और मंदिर को 3 बीघा जमीन देकर बावड़ी का सही से निर्माण कराया। बादशाह ने इस स्थान को “बावड़ी कला” नाम दिया और जिसका आज भी राजस्व विभाग में यही नाम दर्ज है। बादशाह आलमगीर ने ओखाबावजी को “ओखा पीर” नाम दिया और यहां चादर चढ़ाई। उस समय से लेकर आज तक यह मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के अलावा मुस्लिम संप्रदाय के लोगों की आस्था का केंद्र भी बन गया। आज भी बहुत से मुस्लिम लोग इस मंदिर में आते हैं और चादर चढ़ाते हैं, वहीं दूसरी ओर हिंदू लोग इस मंदिर में चोला चढ़ाते हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो यह मंदिर हिंदू तथा मुस्लिम लोगों के बीच में भाईचारे और प्रेम की मिसाल बन कर खड़ा है।