संर्घष करना हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है फिर चाहे यह किसी तरह का ही क्यों ना हो। जहां लोग अपने जीवन को व्यवस्थित करने के लिये संर्घष करते है तो वहीं कुछ लोग अपने बाल बच्चों की अच्छी परवरिश के साथ उनकी हर खुशीयों को पूरा करने लिये सर्घष करते है। इसी तरह का एक उदां। हमें लाहौर के रेलवे स्टेशन में ऐसे व्यक्ति के पास देखने को मिला। जो काफी असहाय होने के बाद भी लोगों के बोझ से दबा जा रहा था।
लाहौर के रेलवे स्टेशन में करीब 20 सालों से काम कर रहे यूसिफ नामक व्यक्ति ने अपने बच्चों के खातिर यहां पर कुली की नौकरी की। और दिनरात की कड़ी मेहनत करके बच्चों की खुशियों के आगे अपनी खुशियों को भी न्योछावर कर दिया। परिवार में एक बेटा और 2 बेटीयों की जिम्मेदारी को उन्होनें बाखूबी निभाया। उन्होनें दिन-रात मेहनत करके लोगों को बोझ उठाकर बच्चे को इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी करायी।
साल 2008 में यूसिफ़ के बेटे ने जिस कॉलेज से इंजीनियरिंग की थी, उसे उसी कॉलेज में लेक्चरार की जॉब मिल गयी। बेटे की नौकरी लगते ही मानों उनके सपने पूरे हो गए। बेटे की जॉब से पूरा परिवार ख़ुश था, बेटे ने नौकरी पाने के बाद पिता की नौकरी छुड़वा दी। लेकिन यूसिफ़ की किस्मत खुशियों से काफी दूर थी। नौकरी पाने के कुछ समय के बाद यूसिफ़ के इकलौते बेटे का एक्सीडेंट हो गया। और उन्होनें अपने इकलौते बेटे को भी खो दिया।
जवान और इकलौते बेटे की मौत के बाद यूसिफ़ का पूरा परिवार बिखर चुका था। यूसिफ़ ने अपने परिवार को फिर दोबारा संभालने के लिये (जिस बेटे की आस में उन्होंने कुली की नौकरी छोड़ दी थी) अब उसे दोबारा करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प बचा ही नही था।
अब वो दोबारा कुली की नौकरी पाने के लिये लाहौर के रेलवे स्टेशन पर वापस आ गए। लेकिन इस बार उनके कंधें भी समान को बोझ नही उठा पा रहे थे। क्योकि उनका एक कंधा पैरालाइज़ हो चुका है। जिससे समान को उठाने में हाथ पैर कांपने लगते थे। लेकिन इसके बावजूद उनका दूसरा उद्देश्य़ अपनी दोनों बेटीयों को काबिल बनाने का था। जिसके लिये वो इन बोझ क सामने भी हार मानने के तैयार नही थे।