इस्लाम में कहा गया है की अल्लाह को धरती बनाने का विचार आया और उसने कहा “कुन” अर्थात हो जा और धरती बन गई। कुछ इसी प्रकार की विचारधारा सनातन धर्म में भी है जो की “एकोSहमं वहुष्यमि” के वेद वाक्य में प्रगट होती है, जिसमें ईश्वर इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संबंध में खुद को निर्माता बताते हुए कहते है की “मैं अकेला था और मेरी इच्छा हुई की मैं अनेक हो जाऊ” और सब कुछ बन गया।
देखा जाए तो दोनों ही विचार इस एक बात का समर्थन करते हैं की यह सारी दुनिया उस सर्वोच्च शक्ति के मात्र एक विचार से बनी है, इस प्रकार से दर्शनशास्र और मनोविज्ञान भी इस सत्य को मानता है की मनुष्य के विचार बहुत शक्तिशाली होते हैं और वे ही उसके जीवन के निर्माता होते हैं।
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वर्तमान में कश्मीर के मुद्दे की और ध्यान दिया जाए तो वहां होने वाली प्रत्येक घटना में शामिल होने वाले युवक के पीछे उसको दिए गए, उसको सिखाये गए और उसके द्वारा बनाये गए विचार ही परिलक्षित होते आपको मिलेंगे। आज चारों ओर चर्चा है कश्मीर फिर से जल उठा है पर मुख्य सवाल यह है की आखिर क्यों ? आखिर क्या विचार थे उन लोगों के जो एक आतंकवादी की मृत्यु होने पर हजारो की संख्या में उसके जनाजे पर आ गए थे। आखिर क्या विचार हैं उन लोगों के जो उस भारतीय सेना को पत्थर मारते नहीं थकते जिन्होंने पिछले साल आई बाढ़ में फसें लोगों को अपनी पीठ पर लाद कर सुरक्षित जगह पहुंचाया था। बात सिर्फ उतनी नहीं है जितनी हम और आप घर में बैठ कर न्यूज़ चैनल्स पर देखते हैं , असल बात है उन विचारों की जो तेजी से कश्मीर के युवाओ के मस्तिष्क में अलगावबाद भावना का जहर फैला रहें हैं। विचार इस बात पर होना चाहिए की इस प्रकार के विचारों को आखिर कौन फैला रहा है और कहां से ये विचार पैदा हो रहें हैं जो हर साल दो साल बाद कश्मीर को आग के दरिया में पहुंचाने का काम करते हैं।
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ज्यादातर लोग इस मुद्दे पर दो ही प्रकार के विकल्प सामने रखते हैं पहला की “आतंकी युवक अनपढ़ था या कम पढ़ा लिखा था , उसको समझ नहीं थी इसलिए वह इस गलत रास्ते पर आ गया था” और दुसरा यह की “युवक आर्थिक तौर पर बहुत परेशान था और उसके पास जीवन गुजारने के लिए पैसे तक नहीं थे इसलिए ही वह भटक गया और इस राह पर चला गया।” लेकिन गौर से देखा जाये तो इनमें से कोई भी बिकल्प सही नहीं है क्युकी बहुत से इस प्रकार के लोग भी हुए हैं जो हाई क्वालिफिकेशन लिए थे, जैसे अफजल गुरु(प्रोफेसर), याकूब मेनन(सी.ए) , हाफिज सईद(प्रोफ़ेसर), तो यह विकल्प तो सही नहीं है की कम पढ़ा लिखा हुआ व्यक्ति ही इस प्रकार का कार्य करे और जहां तक बात दूसरे विकल्प की है तो जान लेना चाहिए ही बिन लादेन, सऊदी के एक बड़े व्यापारी परिवार से था और हाई क्वालिफाइड भी, वर्तमान में भी सऊदी की 80 प्रतिशत सड़के विन लादेन के पिता की कंस्ट्रक्शन कंपनी के द्वारा ही बनी हुई है तब यह विकल्प भी जाया ही जाता है, जिसमें लोग आर्थिक पक्ष को कमजोर होने का वास्ता देकर किसी युवक का कही न कही बचाव करने का कार्य करते हैं।
अभी तक की बात में यह चीज बिलकुल स्पष्ट हो जाती है की आतंक के रास्ते को पकड़ने वाले लोग न तो पैसे की मजबूरी से उस और जाते हैं और न ही कम पढ़े-लिखे या निरक्षर होने के कारण | तब घूम फिर कर तीसरा विकल्प वही बचता है जो की इस आलेख के शुरुआत में इस्लाम और सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार बनती है यानि बिचार से क्रिया का होना तो जिस प्रकार से हर क्रिया के पीछे कोई न कोई विचार सबसे पहले होता है उसी प्रकार से कश्मीर में आगजनी और अलगाव फैलाने वाले लोगों के मस्तिष्क में क्यों कोई विचार न होगा ? तो विचार आ कहां से रहा है आतंक का, अलगाव का, प्रदर्शन का और उसको कैसे रोका जाए यह है मुद्दा जिसपर सभी लोगों को विचार करना चाहिए।
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अभी हालही में कश्मीर में एक आतंकी बुरहान वानी को सेना ने मार गिराया और जानकारी के लिए यह भी बता दें की बुरहान न तो किसी गरीव घर से था और न ही पढ़ाई में कम था। वह 22 साल का 21 वीं सदी में जीने वाला एक युवक था, जो की सोशल मिडिया पर काफी एक्टिव रहता था और आज में जीता था पर फिर अचानक ऐसा क्या हुआ की यह युवक एकदम चेंज होता गया और एक दिन हिज़्बुल का कमांडर बन गया, मात्र 22 साल की उम्र में| आखिर क्या परिवर्तन आया उसके विचारों में और किस ने उन विचारों को बुरहान के मस्तिष्क में डाला, वे क्या विचार थे। इन तथ्यों पर विचार होना चाहिए और इस प्रकार के विचारों को बंद करने के लिए कदम इस ओर उठाने होंगे अन्यथा यह बात भी याद रखनी चाहिए की किसी भी शाररिक बल से हम सिर्फ शारीरिक गतिविधियों का मुंह बंद कर सकते हैं न कि वैचारिक शक्ति के प्रवाह को थाम सकते हैं| परन्तु विचारों की स्वतंत्रता और मुखरता व्यक्ति को कुकृत्यों की तरफ अग्रसर करे तो यह अवश्य ही मानवता के लिए सोचनीय विषय है ।