ऐसा कहा जाता हैं कि सपने वह नहीं होते जिन्हें सोते हुए देखा जाता है, बल्कि सपने तो वह होते हैं जो इंसान को सोने नहीं देते। महाराष्ट्र के महागांव में रहने वाले रमेश घोलप के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, अपने सपने को पूरा करने के लिए रमेश ने अपनी नींद का साथ छोड़ दिया था।
रमेश का बचपन इतना कठिनाईयों के साथ बिता कि उन्हें अपनी मां के साथ गलियों में जाकर चुडि़या बेचनी पड़ती थी, उनके पिता की साइकिल की दुकान थी। पिता को शराब की ऐसी लत थी कि वह अपनी सारी कमाई को शराब की भेंट चढ़ा देते थे। इतना ही नहीं बचपन में पोलियो होने के कारण वह विकलांग हो गए थे, लेकिन अपनी कमियों पर ध्यान ना देकर रमेश ने सारा ध्यान अपनी आईएएस की पढ़ाई में लगाया ।
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रमेश से जब उनके संघर्ष के बारे में बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि संघर्ष के लंबे समय में कुछ ऐसे दिन भी आए जब उनके घर में अन्न का एक दाना भी नहीं हुआ करता था। लेकिन अपने आईएएस ऑफिसर बनने के सपने को पूरा करने के लिए उन्हें घर चलाने के लिए छोटे मोटे काम करने पड़ते थे।
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इसके बाद जैसे तैसे पैसे जमा कर रमेश अपनी आंखों में आईएएस का सपना लिए पुणे पहुंच गए। आईएएस के पहले प्रयास में वह असफल रहे, लेकिन इस पर उन्होंने हार नहीं मानी और दूसरे बार उनकी 287 रैंक आई। आजकल रमेश झारखंड मंत्रालय के एक विभाग में संयुक्त सचिव हैं। रमेश की कहानी सचमुच प्ररित करने वाली है।