आज हम आपको एक ऐसे लड़के, जिसका नाम निसारूद्दीन अहमद उर्फ निसार है। उसकी दर्दनाक कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। 15 जनवरी 1994 को 20 साल के निसार फॉर्मेसी के सेकेंड ईयर के छात्र थे। जिसे हैदराबाद पुलिस उस वक्त बाबरी मस्जिद के एक साल पूरे होने पर कर्नाटक ब्लास्ट मामले में जबरन कॉलेज जाते समय गाड़ी में उठाकर ले गई थी। आपको पता ना हो तो बता दें कि निसार अहमद उन 5 आरोपियों में से एक था। जिसे कर्नाटक में हुए बम धमाके का दोषी माना गया था। इस धमाके में 8 लोग घायल हुए थे। जबकि 2 लोगों की मौत हुई थी।
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लेकिन आज 23 साल बाद देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने निसार अहमद को बेकसूर मानते हुए रिहा कर दिया लेकिन आप आज अंदाजा लगा सकते हैं कि इन 23 सालों में देश में कितना ज्यादा बदलाव आया है। आज 23 साल बाद भी उस बेकसूर निसार की जिंदगी में कुछ नहीं बदला है। उसकी जिंदगी में 23 साल एक जैसे ही रहे वही जेल का खाना, पतली सी कंबल और ट्रेन ब्लास्ट का आरोपी मुजरिम का धब्बा। बस बदल गया तो वो वक्त जो उसने अपनों के साथ गुजारा था। उसके माता-पिता अपने बेटों को बेगुनाह देखने की चाहत में दुनिया छोड़ गये। 12 साल की बहन के अब 12 साल की लड़की हो गई है। वहीं वह अब खुद 43 साल का हो गया है।
वहीं अगर हम ये कहें कि हमारे देश के एक आम इंसान को अपने आपको बेगुनाह साबित करने में 23 साल लग गये तो गलत नहीं होगा। उसने 23 साल ऐसे गुनाह की सजा काटी जो आखिर उसने किया ही नहीं था। निसार को जेल से उसका भाई लेने आया था। आपको जानकर थोड़ी हैरानी होगी लेकिन निसार का भाई भी उन्हीं 5 आरोपियों में से एक था। जिसे पुलिस ने पकड़ा था लेकिन साल 2008 में फेंफड़े के कैंसर की शिकायत होने पर उसे जेल से जल्द रिहा कर दिया। जिसके बाद उसने अपने छोटे भाई को बेगुनाह साबित करने के लिए दिन रात कोर्ट के चक्कर काटे और आखिरकार 23 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की नींद टूटी और उसने निसार को बेगुनाह मान रिहा करने का आदेश दे दिया।
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आपकी उस परिवार के हालातों का अंदाजा लगाने में भी रूह कांप जाएगी। जिस परिवार के दो जवान बच्चों को पुलिस सरेआम धरदबोच कर जबरन अपने साथ ले जाती है। जिसके बाद उन बच्चों के माता-पिता ने अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों की बेगुनाही साबित करने के गुजार दी और बेगुनाही साबित ना कर पाने के चलते वह दुनिया से ही चल बसे। निसार का भाई मुंबई में सिविल इंजीनियर था। जिसे निसार के दो महीने बाद अप्रैल में पुलिस ने जबरन उठाया था। वहीं निसार के बारे में भी उनके परिवार को फरवरी में जब कोर्ट में पेश किया गया तब पता चला था।
फिलहाल निसार जेल से रिहा हो चुके हैं। जिसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद भी किया लेकिन आप माने या ना माने इस वक्त बस निसार एक जिंदा लाश बनकर लौटे है। जिसको हमारे देश की कानून व्यवस्था और सभी ने मिलकर मारा है। उन्होंने बाहर आकर सिर्फ एक ही सवाल किया कि मेरी जिंदगी के वो 23 साल अब कौन लौटाएगा, क्योंकि इसमें कोई शक नहीं कि अगर उस वक्त निसार के साथ ये ना होता तो आज वह एक काफी बड़े ओहदे पर होते लेकिन ना ही आपके पास और ना ही हमारे पास निसार के सवालों का कोई जवाब है। बस हैं तो निसार के लिए दिल में दर्द और सहानूभुति…