एक ठोकर से मिला करोड़ो का खजाना, तहखाने में आज भी दफन है अरबों का खजाना

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आज हम आपको एक ऐसे खजाने के बारे में बता रहें हैं जो की आज भी तहखाने में दफन है। यह एक सच्ची ऐतिहासिक घटना है जो की अपने देश के मध्यप्रदेश के ग्वालियर राज परिवार से संबंधित है। आइये जानते हैं इसके बारे में।

यह घटना उस समय है जब अंग्रेज भारत में थे, उस समय ग्वालियर के राजा जयाजीराव थे, उस समय उनके पास में उनके पूर्वजों की अकूत दौलत थी जिसको उन्होंने छिपा कर किले में रखा था, किले की इस जगह को सिर्फ राजा ही जानते थे और इस जगह पहुंचने का मार्ग “बीजक” में लिखा था और छिपाए गए इस खजाने को “गंगाजली” कहा जाता था।

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जयाजीराव जब अपनी उम्र के अंतिम दौर से गुजर रहें थे तब अचानक वह बीमार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई, वे इस खजाने का पता आगे राजा बनने वाले “माधवराव सिंधिया” को नहीं बता सके। इस प्रकार से यह खजान उस गुप्त जगह पर ही दबा रह गया। माधवराव जब बड़े होकर राजा बने तब वे अचानक एक दिन वे अपने किले की एक गली से गुजर रहें थे कि अचानक एक ठोकर से उनका पैर फिसल गया और उन्होंने अपने बचाव में पास में लगें एक स्तंभ को पकड़ लिया। इस स्तंभ को पकड़ने पर वह स्वयं ही नीचे की और झुक गया और तब माधवराव को लगा कि अब उनको अपने पूर्वजों का खजाना मिल गया। माधवराव ने इस खजाने को निकलवाया जो की उस समय भी करोडों रूपए का था पर यह मूल खजाने का सिर्फ एक भाग था न की पूरा खजाना था। इसके बाद में माधवराव से उनके पिता जयाजीराव के समय के एक पंडित ने उनको खजाने तक पहुंचाने का दावा किया, इसके बाद में माधवराव ने उस पंडित की बात मानी और खजाने तक ले जाने को कहा।

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पंडित माधवराव महल की बहुत सी गलियों से निकाल कर सीढ़ीनुमा रास्ते से खजाने के तयखाने तक ले गया, इस जगह काफी अंधेरा था और उस समय माधवराव को लगा कि उनके पीछे कोई साया है तो उन्होंने राजदंड से अपने पीछे जोर से वार कर दिया और उस जगह से वापस भाग गए। बाद में जब माधवराव अपने सैनिकों के साथ में उस जगह पर आये तो उनको वह पंडित वहां मरा हुआ मिला। इस प्रकार से माधवराव खजाने के पास होते हुए भी उसको खो चुके थे।

इसके बाद में एक अंग्रेज कर्नल बैनरमेन ने उस खजाने को खोजने में माधवराव की सहायता करने की पेशकश की जिसके बाद में कर्नल बैनरमेन और माधवराव के लोगों ने खजाने को काफी खोजा और खजाने का कुछ भाग उनको मिला पर पूरा खजाना नहीं मिल पाया, मिले खजाने की उस समय कीमत 62 करोड़ रूपए आंकी गई थी। लोग आज भी यह मानते कि मूल खजाना आज भी तयखाने में सुरक्षित है पर आज भी सिंधिया राजपरिवार की पहुंच से वह दूर है।

shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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