कहते है कि अगर हौंसले बुलंद हो तो आसमान की ऊंचाइयों को छूने की राह अपने आप ही बन जाती है। इसे सही साबित किया एक सड़क पर भीख मांगने वाले इस लड़के ने। जिसकी लगन के आगे मानो खुद सरस्वती भी उसके आगे झुक गई हो। आज के समय विदेश में पढ़ाई करना भले ही कोई बड़ी बात ना हो पर सुदूर गांव में बैठे एक गरीब को तो दिल्ली भी काफी दूर लगती है। फिर यदि किसी भीख मांगने वाले बच्चे की बात हो तो उसके लिए यह रात में दिखने वाले सपनो के समान है।
एक परिवार सूखे की मार के चलते अपने गांव नेल्लौर को छोड़कर चेन्नई आकर रहने लगा। यहां पर आने के बाद ना रहने का ठिकाना और ना खाने का। दूसरों की दुकानों की छतों पर खड़े होकर अपने आप को छिपाने का प्रयास करते थें। इसके बाद भी पुलिस का डर पूरी रात बना रहता था। मां बाप के साथ पेट की आग बुझाने के लिए यह बच्चा भीख मांग अपना गुजारा करता था।
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इनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। पिता की मौत के बाद जयवेल नाम का यह बच्चा और ज्यादा असाह हो क्योंकि जो वक्त पिता की गोद में बैठकर खेलने का था उस वक्त वो मां के साथ भीख मांग गुजारा करता था। दिनभर की भीख मांगने के बाद दस-बीस रुपये जो भी मिलते थे, वो मां की शराब की लत में ही खर्च हो जाते थे। जयवेल बताते हैं कि उन्होंने तो सपने में भी पढ़ाई, अच्छा खाना, और साफ सुधरे कपड़े के विषय में कभी नहीं सोचा था।
लेकिन उनकी जिंदगी के अंधेरे में उजाला भरने आई उमा मुत्थुरमन जो बेहद गरीब और असहाय बच्चों की जिंदगी के ऊपर एक प्रोजक्ट तैयार कर रही थीं। इसी प्रोजेक्ट के दौरान जयवेल की मुलाकात उमा से हुई और यही से खुले उनकी जिंदगी के नए रास्ते। शुरूआती मुलाकात में जयवेल को उमा और उनके पति अन्य लोगों की तरह धोखेबाज लगें जो गरीबों के नाम लेकर सिर्फ फंड इकट्ठा करते थे और खा जाते थे। लेकिन बाद में उन्हें दोनों दूसरों से काफी अच्छे लगने लगे। सन् 1999 में उमा मुत्थुरमन और उनके पति ने मिलकर जयवेल को अपने पास उसकी देखरेख करने के लिए ले लिया और उसे एनजीओ की मदद से पढ़ाने और आगे बढ़ाने का फैसला किया।
जयवेल बताते हैं कि शुरूआत में उन्हें पढ़ने-लिखने से ऊब लगती थी वो सिर्फ खेलने और मौज मस्ती के लिए स्कूल जाना पसंद करते थे। पर जल्द ही धीरे-धीरे उन्होंने पढ़ाई की उपयोगिता को समझा और फिर कढ़ी मेहनत के दम पर 12वीं की कक्षा में अव्वल नंबरों से पास हुए। अब उन्हें आगे बढ़ाने के लिए कई लोग आ चुके थे। अपनी लगन और मेहनत से इसी बीच जयवेल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम दिया जिसके परिणाम से उन्हें यूके में वेल्स की ग्लेंडर यूनिवर्सिटी में सीट मिली गई।
जयवेल की जिंदगी से जुड़ी ये कहानी सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा है अब वो अपनी जिंदगी में कुछ ऐसा करना चाहते है जिससे वो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उमा और उनके एनजीओ को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास कर सके। जिससे उनकी तरह और गरीब बच्चे भी पढ़ाई कर सके।