समय अपनी गति के तेज रफ्तार से दौढ़ रहा था पर एक मां को पता ही नहीं चला कि बेटे के इंतजार में कैसे 23 वर्ष निकल गये। वो रोज की तरह ही सड़को और बस स्टेड़ों में अपने बेटे की तलाश में आती है और मायूस होकर के वापस लौट जाती है। इन 23 वर्षों के लगातार इंतजार के बाद भी उसका बेटा उसके आंचल में नही आया। वो हर आने-जाने वालो से अपने बेटे के बारे में पूछती और बोलती यदि किसी को भी मुंबई में उसका बेटा कहीं मिल जाए तो बताना कि तेरी मां तेरा इंतजार करते काफी बूढ़ी हो चुकी है। अब उससे कोई काम भी नहीं होता। आकर उसे ले जाए।
रातरीया बस स्टैंड पर कई सालों से इंतजार कर रही इस मां का नाम जीवी रबारी है जिसका बेटा सन् 1992 में अपने परिवार और मां को लेकर मुंबई में काम की तलाश में आया था कोई काम ना मिलने के कारण साड़ी की फेरी का काम करने लगा। तीनों लोग गरीबी में भी खुश होकर मुंबई में स्थित नालासोपारा के पास एक छोटे से मकान में किराये पर रहते थे।
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6 या 7 मार्च 1993 की वो कालरात्रि का दिन जब वीरेन को अपनी मां और परिवार के साथ रातरीया गांव की एक शादी में आना था पर अचानक काम आ जाने के कारण वो वहीं रूक गया और फिर वापस नही आ सका। मां और पत्नी को गांव वापस आने का वादा किया। करीब हफ्ते भर बाद ही 12 मार्च 1993 को मुंबई में भंयकर सीरियल बम धमाके हुए। जिसमें वीरेन की सूचना ना मिल पाने के कारण उसे काफी तलाशा गया पर वीरेन का की पता ना चल सका।
वीरेन के परिचितों के अनुसार उसके कमरे में जाकर मकान मालिक से पूछताछ कि गई तो वीरेन 12 मार्च से घर लौटा ही नहीं था वीरेन की लाश बम धमाकों में मारे गये लोगों में भी नही थी। पुलिस लगातार खोजबीन करती रही और एक दिन वो पुलिस फाइल भी बंद होकर रह गई। उसके साथ ही वीरेन का नाम उसमें दब कर ही रह गया, पर मां की ममता के सामने उसका बेटा अभी भी जिंदा है। जिसकी तलाश में उसकी आखें भले ही बूढ़ी हो गई हो पर उसकी यादें उसके दिल में अभी भी ताजा है जिसे वो आज भी तलाश रही है।
वीरेन की पत्नी उसका इंतजार करते हुए अपने मायके में ही रह रही है। उनकी शादी को सिर्फ एक साल ही हुआ था। इसके बाद भी वो बिन ब्याही दुल्हन की तरह अपने घर पर रहकर वीरेन का इंतजार कर रही है।