आज भले ही हमारे देश में कुछ राजनेता लोग अपने वोट बैंक की खातिर आपसी झगड़े कराकर साम्प्रदायिक माहौल खराब कर रहें हैं, तो वहीं कुछ लोग इस भेदभाव को मिटाकर हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल कायम रहे है। इन्हीं में एक है लंढौरा क्षेत्र में स्थित बसेड़ी गांव के रहने वाले रतनलाल जिसने सभी धर्मों को एक मानते हुए अद्भुत मिसाल कायम की है। रतनलाल एक हिंदू होते हुये भी 22 सालों से रोजा रख कर साम्प्रदायिक दंगे फैलाने वाले राजनेताओं को सच का आईना दिखा रहे हैं। रतनलाल के दिल में जहां ईश्वर है तो वहीं अल्लाह भी है। रतनलाल जहां एक ओर गीता को पूजते है तो दूसरी ओर और कुरान में भी फर्क नहीं मानते।
रतनलाल नवरात्र में देवी दुर्गा की पूजा करते है तो वहीं रमजान के दिनों में रोजे भी रखते हैं
बताया जाता है कि रोजा रखने का सबसे बड़ा कारण उनकी अपनी श्रद्धा है जो 22 साल पहले उनके अचानक बीमार होने से जागी थी। बामारी के समय में रोजा रखने से उन्हें काफी आराम हुआ था तब से वो लगातार रमजान माह के शुरू होते ही रोजा रखते आ रहे हैं। रतनलाल अपने बारे में बताते हुये कहते है कि नवरात्र के समय मां दुर्गा की पूजा करने के साथ कृष्ण जन्म अष्ठमी पर व्रत को भी पूरी आस्था के साथ रखते हैं।
अपनी श्रद्धा के साथ रोजे रखने वाले इस बुजुर्ग को सब सम्मान की दृष्टि से देखते है। लोगों का कहना है कि रतनलाल कबीर पंथी हैं जिन्हे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में माना जाता है। रतनलाल हर धर्म का पालन करते हुये आपसी भाईचारे के साथ मानवता का परिचय दे रहे है, जहां हर धर्म एक विश्वास के साथ टिका है।